गीतांजलि द्वारा लिखित, 18 साल का छात्र

कुछ समय से संपूर्ण भारत में धर्म को लेकर किसी न किसी प्रकार का आंदोलन चल रहा है। फिलहाल कर्नाटक में हिजाब विवाद पूर्ण रूप से जोर पकड़ रहा है जिसने राजनीतिक रूप भी धारण कर लिया है।  विपक्षी पार्टी इस्लामी लड़कियों का समर्थन कर रहा है वहीं शासक दल उनका विरोध कर रहा है। इस मामले के बारे में बहुत सी खबरें सुनने को मिल रही हैं इसलिए यह जानना आवश्यक है आखिर यह मुद्दा है क्या? और हमारा संविधान क्या कहता है?

हिजाब विवाद क्या है?

यह विवाद जनवरी माह में उडुपी (कर्नाटक) के महाविद्यालय में आरंभ हुआ। सभी विधार्थियों के लिए एक ड्रेस कोड निर्धारित किया गया था परंतु कुछ इस्लामी छात्राएं ड्रेस कोड का उल्लघंन करके हिजाब पहनकर आ गई।

राज्य सरकार के आदेश को  मानते हुए, शिक्षकों ने उन्हें कॉलेज में प्रवेश करने से मना कर दिया। इसके बाद इस तरह के कुछ मामले कुंडापुर और बिंदुर के कुछ और कॉलेजों में भी आए।

इस्लामी छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज में प्रवेश न देने के फैसले का विरोध करना आरंभ कर दिया। कुछ समय बाद हिंदू छात्र-छात्राएं भगवा रंग का स्कार्फ पहनकर कॉलेज में आने लगे तथा मुस्लिम छात्राओं का विरोध करने लगे। इस प्रकार विधार्थियों द्वारा हिजाब एवं भगवा धारण करने की घटनाएं बेलगावी के रामदुर्ग महाविद्यालय और हासन, चिक्कमंगलुरू और शिवमोगा आदि में भी घटित हुई है।

कई शैक्षणिक संस्थानों ने इस मामले को लेकर सख्त रूख अपनाया तथा हिजाब एवं भगवा स्कार्फ दोनों ही पहनकर आने वाले छात्रों- छात्राओं को प्रवेश देने से इंकार कर दिया है।

कोर्ट में पहुंचा मामला

पहले विधार्थियों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों के गेट पर प्रदर्शन किया जा रहा था जिसमें मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनकर कॉलेज आने के अपने अधिकार की मांग कर रही थी तथा हिंदू छात्र-छात्राएं उनके विरोध के लिए भगवा स्कार्फ में आ रहे थे परंतु अब यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया है। उच्च न्यायालय द्वारा 14 फरवरी को इस मामले पर सुनवाई की जाएगी। तब तक के लिए उच्च न्यायालय ने अंतरिम रूप से हिजाब पहनने पर रोक लगा रखा है।

देश का संविधान

संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जहां पर राज्य धर्मनिरपेक्षता को मानता  है। संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 तक में धर्म की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है। अनुच्छेद 25 (1) भारतीय नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने, उसका अभ्यास करने एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।

अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता पर दो तरह के अधिकार देता है पहला अधिकार धर्म के अंतःकरण की स्वतंत्रता है जिसमें व्यक्ति धर्म को अपना सकता है एवं उसका पालन कर सकता है। दूसरा अधिकार धर्म को निर्बाध तरीके से मानने और उसका प्रचार करने को लेकर है परंतु सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य इस पर नियंत्रण कर सकती है जब इन धार्मिक कार्यों का देश के केन्द्रीय मूल्य, सार्वजनिक व्यवस्था एवं किसी व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगे।

उच्च न्यायालय की सुनवाई 14 फरवरी को होने वाली है। आशा है कि जल्द से जल्द इस मुद्दे को सुलझाया जाए ताकि विद्यार्थियों की कक्षाओं में वापसी हो। वे धर्म जाति को भुलाकर एवं साथ में मिलकर समान शिक्षा प्राप्त कर सकें क्योंकि शिक्षा ही एकमात्र उपाय है जो सभी प्रकार के मतभेदों एवं कुरीतियों को समाप्त करके, समाज में परिवर्तन लाने का कार्य करती है।

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