हम बच्चों को समझे कौन ?
आज की दुनिया में हम बच्चों की समस्याओं को कोई नही समझता। आज छोटे-छोटे एकाकी परिवारों में भौतिक सुख सुविधाओं के बीच हम बच्चों का बचपन सिमट कर रह गया है। आज हम भागदौड़ भरी व्यस्त जिन्दगी में नितांत अकेले हैं। पैसे कमाने की लगी माँ-बाप की होड़ में बचपन में ही बच्चे बड़े होते जा रहे हैं। माता-पिता अपनी व्यस्त जिन्दगी से बच्चों के लिए समय नहीं दे पाते और बच्चे लगातार भौतिक सुख-सुविधाओं के बीच अकेले तथा अपराध की दुनिया में घिरते जा रहे हैं।