साई सरस्वत द्वारा लिखित, कक्षा 2 का छात्र

हमारे देश का नाम है भारतवर्ष । पुराने जमाने में हमारे देश में एक प्रतापी राजा थे। उनका नाम था उत्तानपात। वे अपनी प्रजा को अपने बेटे के समान प्यार करते थे। प्रजा भी अपनी राजा को भगवान की समान पूजा करते थी। राजा उत्तानपात के दो रानियाँ थी। बड़ी रानी का नाम सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरूचि । बहुत दिन बीत गया पर देनों रानियों को कोई संतान नहीं हुआ। राजा ने पूजा पाठ करके देवताओं से वरदान प्राप्त किया, और कुछ दिन के बाद दोनों रानियों को दो पुत्र का जन्म हुआ। बड़ी रानी के पुत्र का नाम ध्रुव और छोटी रानी के पुत्र का नाम उत्तम रखा गया। परन्तु राजा बड़ी रानी से ज्यादा छोटी रानी को प्यार करते थे। एक दिन ध्रुव राजा की गोद में बैठा देख सुरूचि ने गुस्से में आकर ध्रुव को राजा की गोद से उठाकर अपनी बेटे उत्तम को राजा की गोद में बैठा दिया। यह देखकर छोटा सा बालक ध्रुव का मन बहुत दुखी हुआ। तो अपनी माँ के पास जाकर सब कुछ बता दिया। माँ ने अपने पुत्र को गोद में बैठाया और बोली तुम रो मत। भगवान जी को प्रार्थना करों वे तुम्हारा दुख अवश्य दूर करेंगे। यह सुनकर बालक ध्रुव ने सोचा भगवान कैसे मिलेंगे, एक दिन ध्रुव किसी को कुछ बताए बिना ही जंगल में चला गया और एक मन ध्यान लगाकर भगवान की तपश्या करने लगा। इतने छोटे से बालक का साहस और शक्ति देखकर भगवान बहुत प्रसन्न हुए और ध्रुव को वरदान दिया। भगवान को देखकर ध्रुव ने खुशी से उनका स्तुति करने लगा। भगवान खुश होकर ध्रुव को बड़ा होने के बाद राजा होने का वरदान दिया और मरने के उपरान्त आसमान में तारा बनकर रहने का आशीर्वाद देकर चले गये, ध्रुव खुशी से घर में लौट कर अपनी माँ को सब कुछ बताया।

ध्रुव बड़ा हो कर राजा बने और राज्य शासन किया और मरने के बाद ध्रुवतारा होकर आसमान में चमकने लगे। ध्रुव के मन में साहस और गुरूजनों के प्रति भक्ति से सब दुख दूर हो गया और वो अमर हो गये। इसलिए सब बच्चों को गुरूजनों का भक्ति करना चहिए।