गीतांजलि द्वारा लिखित,18 साल का छात्र

हमारा भारतीय समाज एक  पुरुष प्रधान समाज है। जहां समाज में फैली विभिन्न कुरीतियां हमेशा से ही महिलाओं का शोषण करती आ रही है जिसमें भूण हत्या, दहेज प्रथा, बलात्कार जैसी घटनाएं शामिल है। वैवाहिक बलात्कार के कारण महिलाएं सदियों से शांत होकर  अत्याचार सह रही हैं। जिसे समाप्त करना अति आवश्यक है।

वैवाहिक बलात्कार

जब एक पति अपनी पत्नी के साथ किसी अन्य अनजान पुरुष की तरह यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और जबरदस्ती करने का प्रयास करता है तो उसे वैवाहिक बलात्कार के रूप में समझा जाता है। इसके अलावा अपनी पत्नी से तलाक लेकर अलग रह रहे पति पर भी जबरदस्ती करने पर बलात्कार का मुकदमा लगाया जा सकता है।

⭐वैवाहिक बलात्कार के कुप्रभाव

1)महिलाओं के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: भारत में दो-तिहाई से अधिक वैवाहिक महिलाओ को पतियों से र्दुव्यवहार एवं वैवाहिक बलात्कार सहना पड़ता है। जिससे उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह उन्हें जीवन में कई बार झेलना पड़ता है।

2) मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: पतियों द्वारा दुर्व्यवहार एवं वैवाहिक बलात्कार किए जाने के कारण महिलाओं में तनाव, अवसाद,भावनात्मक सकंट और आत्महत्या के विचार उत्पन्न होने लगते हैं जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं।

3) बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर प्रभाव: वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण के कारण घर में अशांति उत्पन्न होती है जो बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर बुरा प्रभाव डालती है। कई बार महिलाओं की स्थिति बहुत बुरी हो जाती है जिस कारण वह अपनी और अपने बच्चों की देखरेख नहीं कर पाती हैं।

इतना कुछ सहकर भी महिलाएँकई कारणों से विवाह में बने रहने को विवश रहती हैं क्योंकि उन्हें हिंसा बढ़ने का डर, आर्थिक सुरक्षा का अभाव, समाज की आलोचनाओं का भय और सब ठीक हो जाने की आशा होता है।

वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ न्यायालय में हाल ही में एक स्त्री ने अपने पति पर वैवाहिक बलात्कार का आरोप लगाया है। जिस कारण वैवाहिक बलात्कार गैर अपराधीकरण पर बहस एवं आलोचनाएं शुरू हो गई हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानून है परंतु भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध न मानना महिलाओं की गरिमा और मानवाधिकार को कमजोर करता है।

अभी तक वैवाहिक बलात्कार को अपराध ना मानने के कारण-

वैवाहिक बलात्कार के गैर अपराधिक प्रवृत्ति का उदय अंग्रेजों के समय में हुआ। उस समय 1860 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का निर्माण हुआ। तब विवाह से पहले महिलाएं पिता की अमानत तथा विवाह के बाद पति के नाम से जानी जाती थी। उनकी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं थी।

पितृसत्तात्मक  धारणा: हमारा समाज पितृसत्तात्मक समाज है जहां विवाह के बाद पत्नी की कोई व्यक्तिगत और शारीरिक स्वायत्तता नहीं होती हैं। उसकी इच्छा एवं अनिच्छा का कोई महत्व नहीं होता है।

विवाह संस्था के नष्ट होने की संभावना: वैवाहिक बलात्कार को अपराध का दर्जा न देते हुए सरकार द्वारा भी आमतौर पर यह तर्क दिया गया कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध कार्य मानने पर विवाह संस्थाओं के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न होगा।

वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने की आवश्यकता

वर्तमान में विश्व के लगभग 100 देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। परंतु दुर्भाग्य से भारत में इसे आज भी अपराध नहीं माना जाता है। यह महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

अनुच्छेद 14 एवं 21 के विरूद्ध:  वैवाहिक बलात्कार को गैर अपराधिक मानना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) एवं अनुच्छेद 21(निजता के अधिकार) कानून का हनन  है। अनुच्छेद 14 के अनुसार महिलाओं को समानता प्राप्त है उन्हें भी पुरुषों के समान व्यक्तिगत अधिकार है एवं अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों में स्वास्थ्य,गोपनीयता गरिमाऔर सुरक्षित वातावरण आदि शामिल है।

वैवाहिक संस्थाओं के विरुद्ध नहीं: सरकार का दावा था कि वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण वैवाहिक संस्थाओं के विरुद्ध है। इस दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह कोई संस्थागत विषय नहीं बल्कि व्यक्तिगत विषय है। विवाह केवल शारीरिक संबंधों से नहीं आपसी सम्मान से निर्मित है इसीलिए इस स्थिति में विवाह स्वयं ही समाप्त हो जाता है।

समर्थक समितियां:संयुक्त राष्ट्र ने निर्धारित किया हैं कोई भी कार्य जिसमें महिलाओं के शारीरिक मानसिक पीड़ा मे वृद्धि होती है और उन्हें बलपूर्वक रूप से स्वतंत्रता एवं समानता  से दूर रखा जाता है। यह समाज के लिए खतरा है।उसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।

16 दिसंबर 2022 भारत के जे एस वर्षा समिति ने भी वैवाहिक बलात्कार को अपराधीकरण करने का समर्थन किया।

क्या आप भी नन्ही खबर के लिए लिखना चाहते हैं?
संपर्क करें nanhikhabar@gmail.com पर