कक्षा 9 की छात्रा द्वारा लिखित

पिछले तीन महीनों से, पूरे विश्व का ध्यान COVID-19 महामारी पर है, वैक्सीन के विकास से लेकर इसका अर्थव्यवस्था पर असर तक । लॉकडाउन का असर हर इंसान पर अलग- अलग तरीके से पड़ा है । कुछ लोग अपनी नौकरी के लिए परेशान हैं, छात्र अपनी परीक्षायों को लेकर परेशान हैं और लोग अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं । इस समय में ज़रूरी है लोग अपने को किसी तरह से खुश रखें और मौजूदा हालातों का असर अपनी मानसिक स्थिति पर न पड़ने दें । हालांकि  ऐसी महामारी पहली बार दुनिया में नहीं हुई है लेकिन पहली बार मानसिक स्वास्थ्य को इतना महत्व दिया जा रहा है।

अच्छा मानसिक स्वास्थ्य रहे तो हम अपने जीवन के ज़रूरी काम बहुत अच्छे से कर पाते हैं । महामारी और फिर उसके बाद के लॉकडाउन ने लोगों की दिनचर्या बिलकुल हिला दी । इतनी अनिश्चितता और दिनचर्या में गड़बड़ी मानसिक स्वास्थ्य पर असर करती है और तनाव और चिंता बढ़ाती है । ऐसे वक़्त में जब शांत रहना सबसे ज़रूरी है, मानसिक स्वास्थ्य ठीक न रहे तो हम काम भी ठीक से नहीं कर पाते और निर्णय लेने की क्षमता भी कम हो जाती है । अभी लोग ऐसी स्थिति में हैं जिसमें वो पहले कभी नहीं थे । कुछ लोगों का सबसे बड़ा डर है कि उन्हें कोरोना हो जाएगा । लगातार समाचार देख कर उनकी चिंताएँ और बढ़ जाती हैं जो सिर्फ बढ़ती हुई महमारी के बारे में बताते हैं । जबकि यह सब सिर्फ लोगों को सावधानियाँ बताने के लिए होना चाहिए, ऐसी बहुत सारी कहानियाँ पढ़ने और सुनने से चिंता और घबराहट बढ़ जाती है । दुनिया को इस महामारी से उभरने के लिए हर व्यक्ति का योगदान चाहिए, तो लोगों की मानसिक स्थिति अभी अच्छी होनी चाहिए जिससे वो अपने काम ठीक से कर सकें ।

हम सभी ने COVID -19 की वजह से हुए आर्थिक संकट के बारे में समाचार पढ़े और देखे हैं, लेकिन इसका सीधा असर मानसिक स्थिति पर कैसे पड़ता है ? आर्थिक गिरावट अलग-अलग तरह से लोगों को प्रभावित करती है । जैसे रोज़ कमाने वाले मजदूर इस चिंता में होते हैं कि उन्हे वापस जाकर नौकरी मिलेगी या नहीं, छोटे दुकानदार के लिए अपने व्यवसाय को बनाये रखने की चिंता होती है, और नौकरी करने वालों को आय कटौती का सामना करना पड़ता है । यही समस्याएँ चिंता और तनाव बढ़ाती हैं और अंत में शरीर को भी नुकसान पहुंचाती हैं । जर्मनी के हेसे राज्य के वित्त मंत्री थॉमस शफर ने मई में आत्महत्या कर ली थी क्योंकि वह आर्थिक स्थिति के तनाव को झेल नहीं पाए ।

पोल से पता चला कि अमेरिका के आधे से ज़्यादा लोग महामारी के शुरू होने से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं । भारत में सरकार ने एक हेल्पलाइन नंबर की शुरुयात की जिस पर  लोग अपनी चिंतआओं के बारे में बता कर अपनी घबराहट का सामना कर सकते हैं । टॉकस्पेस जैसी ऑनलाइन थेरेपी प्लेटफॉर्म पर लोगों की काल्स की संख्या बढ़ गई है । स्वास्थ्य मंच लाइब्रेट ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य वाले रोगियों की संख्या 180% बढ़ गई है । 17 जून को, असम सरकार ने COVID-19 रोगियों को सहायता और उपचार प्रदान करने के लिए मोनोन नामक एक नए मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरुयात करी । हालांकि, महामारी ने यह बता दिया कि मानसिक स्वास्थ्य के ढांचे में बहुत सुधार की ज़रूरत है । हाल ही में लोकप्रिय भारतीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने देश में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और उजागर कर दिया । भारत में प्रति 100,000 आबादी पर सिर्फ 0.75 मनोचिकित्सक हैं । मानसिक स्वास्थ्य के मार्गदर्शन की जिनको सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है उन्हे ही नहीं मिल पाती है ।

COVID-19 की वजह से ओवरवर्केड स्वास्थ्यकर्मियों की आत्महत्या से लेकर अपने प्रियजनों में बीमारी फैलने के डर से रोगी खुद आत्महत्या करते हुए तक, मानसिक स्वास्थ्य ढांचे की कमी को दर्शाता है । भारत में महामारी के दौरान अवसाद और चिंता के कारण ड्रग्स का सेवन भी बढ़ गया है । जैसे दुनिया भर के विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ बढ़ने की भविष्यवाणी करते हैं, यह समय है कि जब हमे मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को स्वीकार कर लेना चाहिए । हमें एक पुराना वाक्यांश याद रखना चाहिए कि ‘अच्छा दिमाग एक अच्छे शरीर में ही वास करता है’ । महामारी की तबाही के बाद दुनिया को दोबारा से बनाने के लिए वही देश काम कर सकते है जिसके नागरिक मानसिक रूप से स्वस्थ हों ।