परवेश राघव द्वारा लिखित, 22 साल का छात्र

मुझे पहचानते हो
खुदा का बनाया मैं इंसान हूं
खुद का बनाया मैं गुनहगार हूं
मुझे पहचानते होमैं इंसान हूं।

मैं एक तरफ विनाश हूं
मैं एक तरफ उद्धार हूं
लड़ने को सब से मैं ही खड़ा हूं
लड़ रहा हूं जिनसे मैं उनसे ही बना हूं
मुझे पहचानते हो
मैं इंसान हूं।

हैं मेरे बलात्कारों में हाथ
हैं मेरे दंगो में हाथ
बम धमाकों से लेकर खून खराबों तक
लथ पथ हैं मेरे हाथ
जो इनके खिलाफ उठ रहे हैं उनमें भी हैं मेरे हाथ
मुझे पहचानते हो
मैं इंसान हूं।

वक़्त को बदला है मैंने
चांद को छुआ है मैंने
दूरी नापी कितनी है सूर्य की
सारे ब्रह्माण्ड को खुंदा है मैने
सारे जहां में मेरी ही जय-जय कार है
खुद को ही खुदा की जगह पूजा है मैंने
मुझे पहचानते हो
मै इंसान हूं।

कहीं मेरे कारनामे किसी के दिल पर असर कर गए
कहीं मेरी करतूतें से दिल थर-थर डर गए
मैं इतना गिरा कभी के शर्म से सभी नज़रे झूक गई
मैं ऊंचा उठा तो सारे सीने चौड़ गए
मुझे पहचानते हो
मैं इंसान हूं।

आज खुद को बचाने को भी लड़ रहा हूं
आज खुद को मारने को भी लड़ रहा हूं
मुझे पहचानते हो
मैं इंसान हूं।