प्राची द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

जन्म के पश्चात् शिशु जिस भाषा को अपनी माता से सीखता है, उसे मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है । मातृभाषा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। हिन्दी भारत में रहने वाले अधिकतर लोगों की मातृभाषा है। हिन्दी को भारत में रहने वाला हर व्यक्ति समझ सकता है, फिर चाहे उसे हिन्दी बोलनी या पढ़नी न आती हो ।

हिन्दी का महत्व पिछले कुछ दशकों में कम हुआ है। हिन्दी को पहले जो सम्मान और आदर दिया जाता था,अब वह नहीं मिल रहा है। हिन्दी भाषा में पहले जहाँ बड़े-बड़े लेखकों ने, उपन्यासकारों ने, कवियों ने कविताओं, उपन्यासों और ग्रंथो की रचना की है वहीं आज के समय में हिन्दी की बहुत कम रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। हिन्दी के प्रति लोगों का रूझान और स्नेह कम हुआ है, शायद ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि जो स्थान हमें हिन्दी को देना चाहिए, वह स्थान हमने अग्रेज़ी भाषा को दे दिया है । हमारे समाज में अग्रेज़ी को भाषा न मानकर, अग्रेज़ी को प्रतिष्ठा व सम्मान का ज़रिया माना जाता है । हम उन व्यक्तियों को ज़्यादा महत्व देते हैं, जिन्हें अंग्रेज़ी भाषा बोलनी आती है । उन्हे हम ज़्यादा बुद्धिमान और कुशल मानते हैं, ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारी मानसिकता ऐसी बन गई है। माता- पिता चाहते हैं कि जब उनके घर मेहमान आएँ तो बच्चे उनसे अंग्रेजी में ही बात करें, घर से बाहर जाएँ तो अंग्रेजी में बात करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं,जो हिन्दी बोलने वाले व्यक्तियों को हीन द्रष्टि से देखते हैं। उन्हे लगता है कि हिन्दी बोलने वाला व्यक्ति साक्षर (पढ़ा-लिखा) नहीं है। यहाँ तक कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जो यह बहुत गर्व से बताते हैं कि हिन्दी लिखनी नहीं आती या फिर उनकी हिन्दी कमजोर है। परंतु क्या यह सही है कि आपको अपनी मातृभाषा या राजभाषा नहीं आती है और अंग्रेज़ी आती है। किसी दूसरी भाषा को बोलना,सीखना गलत नहीं है, हमे अपने ज्ञान को बढ़ाना चाहिए, परंतु हमें दूसरी भाषाओं को अपनी मातृभाषा पर हावी नहीं होने देना चाहिए । हमें अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए। भाषा को भाषा रहने देना चाहिए न कि उसे प्रतिष्ठा का प्रतीक मान लेना चाहिए ।

माना कि अंग्रेज़ी आधुनिक विश्व में प्रगति के लिए आवश्यक है। अंग्रेज़ी भाषा को वैश्विकरण का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है । दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं जैसे रूस, चीन, जापान और कोरिया आदि जिन्होने अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग सीमित क्षेत्रों तक ही रखा है, उन्होने अपनी राष्ट्रभाषा और मात्रभाषा का स्थान अंग्रेज़ी को न देकर रूसी, चीनी, जापानी और कोरियन भाषाओं को दिया है । इन देशों के लिए इनकी मात्रभाषा ज़्यादा महत्वपूर्ण है, न कि अंग्रेज़ी है ।

महात्मा गांधी जी ने कहा था

“यदि स्वराज्य अंग्रेज़ी बोलने वाले भारतीयों को और उन्ही के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेज़ी ही राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालो, करोड़ो निरक्षरों, निरक्षर बहनों और पिछड़ों व अत्यंजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो तो, हिन्दी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है”

हिन्दी भाषा को विदेशी लोग भी आज के समय में सीख रहे हैं और इसको सम्मान देते हैं परंतु शायद हम ही इसका महत्व भूल गए हैं ।

अत: हम सभी को मिलकर हिन्दी को ज़्यादा से ज़्यादा अपने जीवन में प्रयोग करना चाहिए और जो लोग इसका महत्व नहीं समझते, उन्हें हिन्दी का महत्व समझना चाहिए । हिन्दी को मात्रभाषा और राजभाषा का सम्मान देना चाहिए।