कलावती द्वारा लिखित

देवों के देव महादेव की निवास भूमि कैलाश को अपनी गोद में संजोए पर्वतराज हिमालय की उपत्यकाओं में स्थित उत्तराखण्ड राज्य को प्रकृति के आलोकिक सौन्दर्य का वरदान मिला है। हिमालय को जहाँ देवी पार्वती का पिता कहा जाता है, वहीं यह दवेताओं की सर्वाधिक रमणीय भूमि के रूप में हिमालय की गोद में स्थित है तो देवी गंगा का उद्गम स्थल भी यही स्थित है। इसलिए यह राज्य अपनी पावनता एवं प्राकृतिक सुन्दरता के क्षेत्र में भारत के सभी राज्यों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की फूलों की घाटी तो अपनी सुछनता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसलिए उसे विश्व धरोहरों की सूची में रखा गया है। धन्य है देवभूमि उत्तराखण्ड और धन्य यहाँ के निवासी । उत्तराखण्ड हिमालय श्रृंखला पर स्थित है।

उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति

उत्तराखण्ड राज्य की सीमा चीन और नेपाल से लगती है। इस उत्तरी राज्य के उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण दिशा में उत्तर प्रदेश स्थित है। उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 28.43’ उत्तरी आंक्षांश से 31.27’ उत्तरी आंक्षांश और 77.34’ पूर्वी देशान्तर से 81.02’ पूर्वी देशान्तर रेखाओं के बीच में 53.483’ वर्ग किमी है। जिसमें से 43.035’ वर्ग किमी पर्वतीय है और 7,448 वर्ग किमी मैदानी है। इसका 34.651 वर्ग किमी भूभाग वनाच्छादित है। राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग व्रहदतर हिमालयी  शृंखला का भाग हैं, जो उची हिमाच्छादित चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है। इसकी निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढकी हुई है, जिनका स्वतंत्रता से पूर्ण अंग्रेज लकड़ी – व्यापारियों और स्वतंत्रता के पश्चात वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया। हाल ही के केदारनाथ और बद्रीनाथ हिन्दुओं के सबसे पवित्र स्थान है। इनको चार धाम के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि जो पुण्यात्मा यहाँ का दर्शन करने से सफल होते हैं, उनके न केवल इस जन्म के पाप धुल जाते हैं, वरन वे जीवन मरण के बन्धन से भी मुक्त हो जाते हैं। इस स्थान के सम्बंध में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थल है जहाँ पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होते है। तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहल यमुनोत्री और गंग्रोत्री का दर्शन करते हैं। यहाँ से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारेश्वर पर जलाभिषेक करते हैं। इन तीर्थयात्रीयों के लिए परम्परागत मार्ग इस प्रकार हैं- हरिद्वार-ऋषिकेश-देवप्रयाग-टिहरी-धरासु-यमुनोत्री-उत्तरकाशी-गंग्रोत्री-लियुगनरायण-गौरीकुण्ड-केदारनाथ।

उत्तराखण्ड की भाषा

उत्तराखण्ड राज्य में तीन मुख्य भाषाएं बोली जाती हैं – गढ़वाली, कुमाउॅनी, और जौनसारी भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखण्ड राज्य में कुल तेरह भाषाएं बोली जाती हैं। उत्तराखण्ड में इनमे से अधिकतर भाषाओं की जानकारी दी थी। ग्रियर्सन ने सन् 1908 ई0 से लेकर सन् 1927 ई0 तक यह सर्वेक्षण करवाया था। इसके बाद उत्तराखण्ड की भाषाओं को लेकर कई अध्ययन किये गये। हाल में पंखुड़ी नामक संस्था ने भी इन भाषओं पर काम किया। यह पूरा काम 13 भाषाओं पर ही केन्द्रित रहा । इनमें गढवाली, कुमाउॅनी, जौनसारी, जौनपुरी, पोहारी, रवांल्टी, बंगाड़ी, मार्च्छा, राजी, पाड़ रंग ल्वू बुक्ससाणी आदि शामिल है। इस पर मतभेद हो सकता है कि ये भाषाएं हैं या बोलियाँ। यदि विचार किया जाए कि एक बोली का अगर अपना शब्द भण्डार है, वह खुद को अलग तरह से व्यक्त करती है तो भाषा कहने में कोई गुरेज नही होना चाहिए। उत्तराखण्ड देवो की भूमि को मेरा नमन ।