गीतांजलि द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

अंतरिक्ष में अनेकों रहस्य भरे हुए हैं जिनकी जांच करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक की रिसर्च करते रहते हैं। अंतरिक्ष के अद्भुत रहस्यों में से एक अद्भुत और रोचक तथ्य सुपरनोवा के बारे में जानकारी प्राप्त करना है तो आज हम अंतरिक्ष विज्ञान के महत्वपूर्ण पहलू सुपरनोवा के बारे में जानेंगे।

सुपरनोवा क्या है?

अगर हम सामान्य रूप में सुपरनोवा के बारे में जानने का प्रयास करें तो हमें पता लगता है कि सुपरनोवा का अर्थ हमारे ब्रह्मांड अर्थात अंतरिक्ष में होने वाले किसी ऐसे विस्फोट से है जो बहुत अधिक विशाल, ऊर्जावान और चमकीला होता है।

सुपरनोवा विस्फोट का कारण

सुपरनोवा विस्फोट तारों की मृत्यु के कारण होता है अर्थात अगर हम खगोलविदों (ऐसे वैज्ञानिकों जो ब्रह्मांड एवं खगोलपिंडो का अध्ययन करते हैं) के अनुसार समझें तो जब एक तारा समाप्त होने वाला होता है अर्थात उस तारे की मृत्यु होने वाली होती है तो उसके अंतिम समय में एक भयंकर विस्फोट के साथ एक तारे का अंत होता है और इसी विस्फोट को सुपरनोवा कहते हैं।

तारे की उत्पत्ति

जैसा कि हमने पढ़ा कि तारों की मृत्यु ही सुपरनोवा विस्फोट का कारण होती है तो तारों की मृत्यु के बारे में जानने से पहले हम जानने का प्रयास करेंगे कि तारे की उत्पत्ति कैसे होती है अर्थात तारे कैसे बनते हैं।

हम सभी जानते हैं कि हमारे वायुमंडल की तरह ही ब्रह्मांड में बहुत सारे गैस मौजूद होते हैं उन्हीं गैसों में से हाइड्रोजन और हीलियम गैस मिलकर तारों का निर्माण करते हैं अर्थात ब्रह्मांड में मौजूद हाइड्रोजन और हीलियम गैस घने बादल के रूप में परिवर्तित होकर एक जगह एकत्रित हो जाते हैं जिससे तारों की उत्पत्ति होती है और उनका जीवन आरंभ होता है।

तारे में हाइड्रोजन और हीलियम के साथ-साथ अन्य गैस जैसे कार्बन, नाइट्रोजन, नियोन आदि भी होता है परंतु हाइड्रोजन (70%) और हिलियम (28%) सबसे ज्यादा होता है।

तारों को उनके रंग, चमक और तापमान के अनुसार बहुत सारे भागों में बांटा गया है। रंग के आधार पर देखें तो लाल, सफेद और नीले तारे हमारे ब्रह्मांड में मौजूद है।

तारों की मृत्यु

अगर हम तारों की मृत्यु के बारे में बात करते हैं तो आपके मन और मस्तिष्क में सवाल आता होगा कि तारों की मृत्यु कैसे होती है? तारों की मृत्यु से संबंधित सभी सवालों को दूर करने के लिए हम उनकी मृत्यु से संबंधित जानकारी दे रहे हैं।

तारे में हाइड्रोजन और हीलियम मौजूद होते हैं। धीरे-धीरे हाइड्रोजन समाप्त होना आरंभ हो जाता है तथा तारे जीवन के अंतिम चरण अर्थात मृत्यु के समय पर पहुंच जाता है जिससे तारा बहुत विस्तृत और लाल हो जाता है। एक बड़े विस्फोट के साथ तारे का विनाश होता है और इस विस्फोट को ही सुपरनोवा कहते हैं।

एक तारे की मृत्यु दो प्रकार से हो सकती है। पहली स्थिति में अगर तारा अपने जीवन के अंतिम समय में आ गया है तथा उसकी मृत्यु होने वाली है तब वह विस्फोट के साथ समाप्त होता है। दूसरी स्थिति में जब तारा बहुत अधिक हीलियम अर्थात ऊर्जा सोख लेता है और उसके अंदर उर्जा का बहुत अधिक दबाव बढ़ जाता है तो तारा फट जाता है। यह विस्फोट भी बहुत भयानक होता है तथा सुपरनोवा ही कहलाता है।

सुपरनोवा विस्फोट में ऊर्जा की उत्पत्ति

सुपरनोवा बहुत ही विशाल विस्फोट होता है जिसमें केवल एक सेकेंड के दौरान बहुत अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। 100 वर्षों में सूर्य के द्वारा जितनी ऊर्जा उत्पन्न की जाती है उतना केवल एक सेकेंड के दौरान सुपरनोवा विस्फोट में उत्सर्जित हो जाती है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सुपरनोवा विस्फोट कितना बड़ा होता होगा।

सुपरनोवा विस्फोट के बाद की स्थिति

सुपरनोवा विस्फोट

जैसा कि हमने पूरे लेख मे समझा कि सुपरनोवा विस्फोट के द्वारा तारे का अंत हो जाता है परंतु इस विस्फोट के बाद भी तारे का केंद्र बच जाता है जो बाद में धीरे-धीरे संकुचित होना आरंभ हो जाते हैं और ब्लैक हॉल में परिवर्तित हो जाता है।

ब्लैक होल अंतरिक्ष में पाए जाने वाली ऐसी जगह है जिसमें भौतिक विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता तथा यहां पर प्रकाश का परावर्तन भी संभव नहीं है जिस कारण यह  अंतरिक्ष का यह स्थान अंधकारमय दिखाई देता है।

ब्लैक होल के बारे में पूर्ण जानकारी लेने के लिए आप हमारे वेबसाइट पर मौजूद ब्लैक होल से संबंधित लेख पढ़ सकते हैं।

आशा है कि अंतरिक्ष विज्ञान के रहस्यमई और रोचक अभिक्रिया सुपरनोवा के बारे में जानकारी हासिल करके, अच्छा लगा होगा। हम इसी प्रकार के ज्ञान और विज्ञान से संबंधित जानकारियां के साथ फिर मिलेंगे।

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