दीपाक्षी सिंगला द्वारा लिखित, 17 साल की छात्रा

पिछले कई समय से वैज्ञानिक अन्य ग्रहों व चंद्रमा पर जीवन की खोज के लिए विभिन्न घटकों को ढूंढने का प्रयास करते आ रहे हैं । कुछ समय पहले इसी खोज में मंगल गृह पर भी यान भेजा गया था। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए शुक्र गृह पर भी जीवन की उपस्थिति के संकेत मिले हैं। हाल ही में ‘नेचर एस्ट्रॉनॉमी’ में प्रकाशित एक लेख में वैज्ञानिकों ने शुक्र गृह के वातावरण में फॉस्फीन गैस के अंश मिलने की सूचना दी। वास्तव में यह खोज 2017 में की गई थी।

यह पृथ्वी से दूर किसी अन्य गृह पर जीवन की संभावना के लिए अभी तक का सबसे विश्वसनीय प्रमाण है । वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रमा या मंगल गृह पर पानी की खोज की तुलना में शुक्र गृह पर फॉस्फीन गैस की यह खोज अधिक महत्वपूर्ण है ।

संक्षिप्त इतिहास

हवाई के मौना केआ की वेधशाला में रखे जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप तथा चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलीमीटर की सहायता से ब्रिटेन में कार्डिफ युनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स व उनके साथियों ने शुक्र गृह पर नज़र रखी हुई थी। इसी दौरान ग्रीव्स को शुक्र गृह के बादलों में फॉस्फीन गैस के स्पेक्ट्रल सिग्नेचर मिले। उन्होने दावा किया कि शुक्र गृह के बादलों में फॉस्फीन गैस बहुत ही अधिक मात्रा में उपस्थित है। परंतु ग्रीव्स के अनुसार इस गैस के उत्सर्जन का मूल अभी भी अज्ञात है । फॉस्फीन गैस की कड़ी जीवन से जोड़ने के लिए ग्रीव्स व अन्य वैज्ञानिकों की खोज अब भी जारी है ।

फॉस्फीन गैस

फॉस्फीन गैस फॉसफोरस के एक अणु और हाइड्रोजन के तीन अणु के मिश्रण पर बनती है । फॉस्फीन एक रंगीन गैस है जिसकी गंध लहसुन या सड़ी हुई मछ्ली के जैसी होती है । इस गैस का संबंध धरती पर जीवन से है । यह गैस पेंगुइन के पेट में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों से जुड़ी है तथा यह दलदल वाले इलाकों में पाई जाती है जहां ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है। यह गैस बैक्टीरिया द्वारा ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में उत्सर्जित की जाती है। परंतु सवाल यह है कि यह गैस शुक्र गृह के समुद्र तल से 50 किलोमीटर ऊंचाई पर वहाँ के वातावरण में कैसे उपस्थित है। विज्ञान के अनुसार कार्बनिक पदार्थ के टूटने से भी यह गैस थोड़ी मात्रा में पैदा होती है और वहाँ फॉस्फीन गैस की उपस्थिती की शंका इसी कारण से जताई जा रही है क्योंकि वहाँ कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता है ।

शुक्र गृह

शुक्र गृह सौरमंडल का सबसे चमकीला गृह है । यह सूर्य से दूसरा सबसे निकटतम गृह है । इसे भोर का तारा और सांझ का तारा कहा जाता है । शुक्र गृह को पृथ्वी की जुड़वां बहन भी माना जाता है यह गृह एक बहुत ही मोटी परत से ढँका हुआ है जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 96 प्रतिशत है । इस गृह पर वायुमंडल दवाब धरती के मुक़ाबले 90 गुना ज़्यादा है। यहाँ की सतह का तापमान 400 डिग्री सेलसियस से भी अधिक है । इसकी इन्ही विशेषताओं के कारण जीवन होने के आसार शुक्र गृह पर लगभग असंभव हैं; परंतु फॉस्फीन की मौजूदगी से जीवन के होने के संकेत मिले हैं।

जीवन की खोज में नए मिशन

अमेरिकी अंतरिक्ष अजेंसी नासा शुक्र गृह के लिए दो योजनाओं पर कार्य कर रही है। इन्हे कब लांच किया जाएगा इसकी कोई सूचना अभी नहीं दी गई है। इससे शुक्र गृह के वायुमंडल की और अधिक जानकारी मिल सकेगी। इन दो योजनाओं के नाम “DAVINCI” तथा “VERITAS” हैं।

न्यूजीलैंड की रॉकेट लैब कंपनी ने भी आगे की खोज के लिए अपनी सैटेलाइट शुक्र गृह पर भेजने की बात कही है ।

“यदि शुक्र गृह पर जीवन संभव हुआ तो यह हमारे लिए एक बहुत बड़ी कामयाबी होगी”