प्राची द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

संसार में कुछ जीवों का जीवन मात्र एक दिन का होता है, तो कुछ का तीन सौ वर्षों का होता है। सम्पूर्ण विश्व में कछुओं की 260 प्रजातियों में से भारत में 28 प्रजातियां पाई जाती हैं। हाल ही के दिनों में 19 जुलाई 2020 को ओडिशा के बालासोर जिले के सुजानपुर गाँव में रहने वाले किसान बासुदेव महापात्रा को अपने खेत में पीले रंग का एक दुर्लभ प्रजाति का कछुआ मिला। इस कछुए की उम्र डेढ़ से दो साल की बताई गई है। यह एक फ़्लैप शेल कछुआ था,जो कि मुख्यतः भारत,पाकिस्तान,नेपाल

बांग्लादेश और श्रीलंका में पाए जाते हैं। बासुदेव ने उस कछुए को वन्य अधिकारीयों को सौंप दिया।

पीले रंग का वैज्ञानिक कारण

जैव विविधता संरक्षण के अधिकारियों ने कछुए की त्वचा का पीला रंग और गुलाबी रंग की आँखों का वैज्ञानिक कारण रंगहीनता (ऐल्बिनिज़म) बताया है।

ऐल्बिनिज़म एक प्रकार का अनुवांशिक विकार है, जिसमें त्वचा, आँखों और बालों में या अन्य प्रजातियों में फर, पंख या पंखो में वर्णक का कम उत्पादन होता है, या नहीं होता। यह मानव सहित सभी रीढ़धारियों को प्रभावित करता है। रंगहीनता को आमतौर पर “रंजकहीन जीव (ऐल्बिनो)” कहा जाता है। 13 जून को प्रतिवर्ष रंगहीनता दिवसपूरे विश्व में मनाया जाता है।

कछुए की प्रजातियाँ

कछुआ या कूर्म सरीसृपों के जैव-वैज्ञानिक गण के सदस्य हैं। विश्व में स्थलीय और जलीय दो प्रकार के कछएं पाए जाते हैं। कछुएं सर्वाहारी होते है। उनके आहार में घोंघे, मेढ़क व जलीय वनस्पति शामिल है। कछुओं की अधिकतम आयु 300 वर्ष होती है। भारत में कछुओं की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं जैसे- साल, चिकना, चितना, छतनहिया, रामानंदी, बाजठोंठी और सेवार आदि प्रसिद्ध कछुएं हैं।

कछुओं की दुर्लभ लुप्तप्राय प्रजातियाँ व उसका कारण

लुप्तप्राय प्रजातियाँ ऐसे जीवों की आबादी है, जिनके लुप्त होने का खतरा है या फिर मानवीय कार्यों से लुप्त होती जा रही हैं।

तेजी से खत्म हो रहे कछुओं की कई प्रजातियों को राष्ट्रीय एवं संरक्षण समितियों ने लाल सूची (रेड लिस्ट) व वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की सूची में शामिल किया है।

कछुओं की बढ़ती तस्करी और व्यापार से कछुओं की संख्या कम होती जा रही है। हमारे द्वारा किया जा रहा जल प्रदूषण भी कछुओं की घटती संख्या का एक कारण है। भारत में करीब 17 कछुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं। कछुओं की कुछ दुर्लभ लुप्तप्राय प्रजातियाँ हैं – सिलहट छत वाला कछुआ, लाल ताज पहना छत कछुआ, बाजठोंठी समुद्री कछुआ और भारतीय स्टार कछुआ हैं।

कूर्म ऐप

भारत सरकार ने इस वर्ष 23 मई को विश्व कूर्म (कछुआ) दिवस पर कूर्म ऐप की शुरुआत की। इस ऐप के जरिए सरकार भारत में कछुओं का संरक्षण करना चाहती है व इस ऐप में कछुओं से जुड़ी जानकारियां उप्लब्ध हैं।

कछुआ का पर्यावरण को योगदान

कछुएं जलीय परितन्त्र को साफ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पानी की सड़ी वनस्पति खाते हैं, जिससे जल प्रदूषण दूर होता है।

कछुआ व अन्य जीव-जन्तु इस संसार की खाद्य श्रृंख्ला और परिस्तिथितिकि तन्त्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है। सभी जीवों से ही एक खुशहाल संसार का निर्माण होता है।