गीतांजलि द्वारा लिखित, 18 साल का छात्र

आज हम कहते हैं कि समाज में लड़कियों का सम्मान है एवं वह विकास कर रहीं हैं परंतु आज भी हमारा समाज पितृसत्तात्मक व्यवस्था से जकड़ा हुआ है जहां एक पुरूष को एक महिला से अधिक अधिकार हैं। एक व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों में जीवन जीने का अधिकार, स्वतंत्रता एवं संपत्ति अधिकार शामिल हैं जो उसे जन्म के समय से ही प्राकृतिक रूप में प्राप्त है।इन बातों को राजनीतिक वैज्ञानिक ने 18वीं सदी में ही बता दिया था परंतु हम देखते हैं कि 21वीं सदी में भी महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। कुछ समय पहले ही उच्च न्यायालय ने कई कानूनों में संशोधन करके महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार प्रदान किया है।

हिंदू संपत्ति कानून

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में पिता की संपत्ति पर केवल बेटों का अधिकार रहता था और बेटियों का अधिकार केवल अर्जित संपत्ति पर ही होता था। पिता और भाई अपनी इच्छा से उन्हें संपत्ति दे सकते थे परंतु वह संपत्ति के लिए आवाज नहीं उठा सकती थी।

2005 के कानून कोसंशोधित करके बेटों के बराबर बेटियों को पिता की पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार दिया और यह भी कहा गया कि विवाह के बाद पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता अर्थात विवाह के बाद भी उसका पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।

विभिन्न समाजशास्त्रीय एवं वैज्ञानिकों ने इस नए संपत्ति नियम के आने के कुछ लाभ तथा कुछ हानियां बतायेहैं:-

लाभ

इस कानून के आने से महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा प्राप्त होगा जिससे उन्हें आर्थिक रूप से सुरक्षा रहेगी एवं वह अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने में समर्थ होंगी।

यह नियम समानता के सिद्धांत को सही ठहराते हैं अर्थात महिला और पुरुष दोनों ही समान है। इन दोनों को ही पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार है।

हानियां

कुछ लोगों को आशंका है कि यह महिलाओं के विरोध में साबित ना हो जाए अर्थात धन के लालच में आकर महिलाओं के ससुराल वाले उन पर घरेलू हिंसा कर सकते हैं या उन पर दबाव बनाया जा सकता है।

इसके जवाब में कुछ विद्वानों ने कहा कि इसके लिए घरेलू हिंसा कानून है एवं महिलाओं को सशक्त और जागरूक करके उन्हें  दबाव में आने से बचाया जा सकता है।

वर्तमान स्थिति

आज के समय में महिलाओं को कानूनी स्तर पर पुरुषों के समान पैतृक संपत्ति में अधिकार तो दे दिया गया है परंतु वे उन्हें जमीनी स्तर पर उपयोग नहीं कर पा रही क्योंकि समाज में आज भी महिलाओं को पराया धन माना जाता है अगर कोई महिला अपनी संपत्ति की मांग करती है तो उसे नीची नजरों से देखा जाता है एवं समाज के लोग उसे ताने देते हैं।

कई महिलाओं में आज भी अपनी संपत्ति को लेकर जागरूकता का अभाव है। वह आज भी अपने पति एवं पिता पर निर्भर है।

निष्कर्ष

आज महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें जागरूक, शिक्षित और सशक्त करना अत्यंत आवश्यक है जिससे वे अपने अधिकारों को समझ सकें और अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठा सकें।

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