अभिषेक कश्यपद्वारा लिखित, 21 वर्ष का छात्र

भारत-चीन (1962) युद्ध के समय सीजफायर होने के बावजूद चीनी हमले का खतरा भारत पर मंडरा रहा था, क्योंकि चीन जैसे देश पर भरोसा करके भारत पहले ही बहुत बड़ी गलती कर चुका था।

इस बार यह बात साफ हो चुकी थी की अगर अब चीनी सेना ने दोबारा आक्रमण किया तो उसका निशाना असम होगा। इस डर से असम के लोग असम छोड़ के जाने लगे, तभी डर के अंधेरी रात से निकल कर साहस का वो उजाला सामने आया जिसमे साड़ियाँ पहने भारतीय होमगार्ड की लड़कियों ने राइफल्स उठाई और चीनी पीएलए सैनिकों का सामना करने का फ़ैसला किया।

परिस्थितियां विसम थी परंतु देश की महिला शक्ति उनके आगे कभी झुकी नहीं। साहस और पराक्रम के साथ वे सभी चीनी सैनिकों के सामने दीवार बन कर खड़ी हो गईं।

इन महिला सैनिकों को असम के तेजपुर में हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी। महज कुछदिनों में ये वीर महिलाएं योद्धा बन कर तैयार हो गई और मातृभूमि को यह विश्वास दिलाया कि परिस्थितियां कैसी भी हों, उनकी बेटियां उनकी रक्षा से कभी भी पीछे नहीं हटेंगी और आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए अपनी जान भी न्योछावर कर देंगी।

साड़ियों में इन लड़कियों ने हाथ में बंदूक लेकर भारत चीन युद्ध के इतिहास में बड़ी गौरव से अपना नाम अंकित कर दिया। परन्तु, यह कहानी आधे से ज़्यादा भारतीयों को पता ही नहीं है।

तेज़पुर में भारतीय होमगार्ड की इन लड़कियों ने बंदूकें उठाई, चीन की सेना का सामना करने के लिए तैयार हो गई। युद्ध के विराम होने तक ये महिलाएं नारी शक्ति का प्रदर्शन करते हुऐ चीनी सेना के सामने दृढ़ता से डटी रहीं।  इन महिलाओं ने दिखाया कि अगर देश में युद्ध की स्थिति हो तो महिलाएँ भी पुरुषों से कम नहीं हैं। किंतु हमारे देश के कुछ ‘विशिष्ट इतिहासकारों’ ने इस पराक्रम को हमारे पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं दिया और हम सभी इनके इस साहस को भूल गए और इनका पराक्रम इतिहास के पन्नों में धूमिल होकर रह गया।

नमन है हमारे भारत की नारीशक्ति को!

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