तान्या शर्मा द्वारा लिखित, कक्षा 5 की छात्रा

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन, 1869 को हुआ था। उनके  पिता श्री करमचंद के ‌राजकोट के दिवान थे। गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा वहीं हुई । वह  बचपन में बड़े संकोची स्वभाव के थे। किसी से लड़ना‌ और बड़ों से झूठ बोलना उन्हें पसंद नहीं था। श्रवण-पितृ भक्ति नाटक पढ़कर उनमें पितृ की भावना जागी तथा सत्यवादी हरीशचंद्र नाटक  देखकर  उन्होंने सत्यवादी बनने का निश्चय किया। तेरह साल की उम्र में उनका विवाह कस्तूरबा से हो गया था।

गांधी जी उच्च शिक्षा के लिए विलायत गए। वहीं से बैरिस्टर बनकर लौटने पर वे मुंबई में वकालात  करने ‌लगे। उन्हीं दिनों एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा । वहां के गोरे लोग भारतीयों का अपमान करते थे। गाँधी जी ने इसका विरोध किया। जब वह भारत लौटे तो यहां भी यही स्थिति  देखी। गांधी जी ने इसका विरोध करने के लिए सत्याग्रह और अहिंसात्मक आन्दोलन अपनाया, जिससे गोरी सरकार को झुकना पड़ा ।

गाँधी जी ने भारतीय संवाधिनता संग्राम का कुशल नेतृत्व किया। उन्होनें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। वे अनेकों बार जेल गए। सन 1942 में उन्होने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाया । गाँधी जी के नेत्रत्व में भारत का स्वतन्त्रता संग्राम सफल रहा और अंत में 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया । गाँधी जी ने राष्ट्र-भाषा के लिए हरिजनों एवं महिलायों के उद्धार के लिए स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग के लिए आंदोलन चलाया। इन कार्यक्रमों को वह संवाधिनता आंदोलन का ही अंग मानते हैं ।

प्राय: मनुष्य युग के अनुसार बदलता है परंतु कुछ मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो युग ही बदल देते हैं । महात्मा गाँधी ऐसे ही युग पुरुष थे। उन्होने सिद्ध कर दिया कि अस्त्र- शस्त्र से बढ़कर  सत्या और अहिंसा में कहीं अधिक शक्ति है। अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम में रहते थे । सन 1914 में गांधी जी भारत लौट आए । देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया । उन्होने अगले चार वर्ष भारतीय स्थिति का अध्ययन करने तथा उन लोगों को तैयार करने में बिताए जो सत्याग्रह के द्वारा भारत में प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों को हटाने में उनका साथ दे सकें । उन्होनें, फरवरी 1919 में अंग्रेजों के बनाए रौलट्ट एक्ट कानून का विरोध किया जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुक़द्दमे के जेल भेजने का प्रावधान था। फिर गाँधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन की घोषणा कर दी इसके परिणाम स्वरूप एक ऐसा राजनीतिक भूचाल आया जिसने 1919 के बसंत में समूचे उपमहाद्वीप को झंझोर दिया।

गाँधी जी की हत्या

किन्तु राष्ट्र की स्वतन्त्रता का आनंद उठाने के लिए गाँधी जी ज़्यादा समय तक जीवित नहीं रह सके। 1948 को जब वो प्रार्थना के लिए जा रहे थे तो उस समय एक हिन्दू धर्मार्थ व्यक्ति ने उनको गोली मारकर उनकी हत्या कर दी क्योंकि उसका विचार था कि गाँधी जी मुसलमानों का पक्ष लेकर हिन्दूओं को आहात कर रहे हैं । इसी प्रकार से महान महात्मा की जीवन लीला समाप्त हो गई। वे जब तक जीवित रहे भारत भूमि अस्मिता और आज़ादी के लिए समर्पटी रहे। “हमारे जीवन से रोशनी चली गई और हर जगह अंधेरा छा गया”- इन्ही शब्दों में भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने महात्मा गाँधी जी की मृत्यु के दुखद समाचार को राष्ट्र के समक्ष प्रकट करते हुए कहा था। गाँधी जी की पावन स्मृति में नई दिल्ली में विशेष रूप से बनाए गए राजघाट में गाँधी जी की आस्तियों की राग सहेज कर रखी गई है ।

महात्मा गाँधी के सिद्धान्त

गाँधी जी ने मार्ग बताए थे। उनका योगदान न केवल हमारे देश के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए उनका अमूल्य है । उन्होनें राजनीति में अध्यात्मिका के तत्व शामिल किए और उसे हिंसा और नफरत से मुक्त रख कर और अधिक उदात्त बनाया। उन्होनें हिन्दू मुस्लिम एकता, छुआछूत, पिछड़े वर्गों की उन्नति, गांवों के सामाजिक विकास के केंद्र के रूप में विकसित करने, समाजी स्वतन्त्रता, स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग आदि पर विशेष रूप से बल दिया । ये उनके योगदानों की विरासत में से कुछ ऐसे तत्व हैं जिंका ज़्यादा योगदान रहा ।