प्रिया द्वारा लिखित,कक्षा 10 की छात्रा

पराली एक समस्या ?

पराली धान के बचे हुए हिस्से को कहते हैं, जिसकी जड़े धरती में होती हैं। धान की फसल पकने के बाद जो उसका ऊपरी हिस्सा होता है, उसे किसान काट लेते हैं, क्योकिं वही काम का होता है। जो बाकी का हिस्सा होता है वो किसान के लिए किसी काम का नहीं होता है। अगली फसल को उगाने के लिए खेतों को खाली करना होता है इसलिए किसान फसल के बाकी का यानि सूखी पराली को आग लगा देता है।

किसानों का क्या कहना है ?

पराली न जलाने के निर्देश के बाद भी किसान नहीं मान रहे हैं, वह फिर भी ऐसा ही कर रहे हैं। इसको लेकर उनका साफ कहना है कि या तो उनको अन्य विकल्प दिये जायें या फिर वे ऐसा ही करते रहें। हरियाणा के जींद में भारतीय किसान यूनियन ने प्रशासन को खुले तौर पर चुनौती देते हुए पराली जलाकर मामले दर्ज करने की बात कही,वहीं दूसरी ओर कृषि विभाग पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्यवाही कर  रहा है। जिला जींद में ही कई किसानों को नोटिस भी दिये जा चुके है।कई किसानों पर तो एफ़आईआर  भी दर्ज है।

किसानों का पराली जलाने की समस्या पर यह कहना है कि पराली को जमीन में ही नष्ट करने वाली विदेशी मशीने काफी मंहगी होती है और इस देश में किसानों की इतनी आमदनी नहीं है कि वे इतनी महंगी मशीन खरीद सकें। किसानों का यह मानना है कि अब सरकार ही इस समस्या का समाधान निकाले।

क्या है एनजीटी के आदेश ?

एनजीटी ने पराली जलाने को लेकर साफ मना कर दिया है।इसके आदेश के अनुसार 2 से 5 एकड़ जमीन पर पराली जलाने पर 2500 का जुर्माना/ 5 एकड़ से ज्यादा जमीन पर पराली जलाने पर 5000 का जुर्माना लगेगा।

पराली जलाने के स्वास्थ्य पर क्या नुकसान होते है ?

पराली जलाने से जो धुँआ निकलता है उसमे कार्बन मोनोक्साइड और कार्बनडाइऑक्साइड गैस होती है। जिनके कारण ओजोन परत फट रही है और अल्ट्रावायलेट किरणें, जो हमारी त्वचा के लिए बहुत हानिकारक सिध्द हो सकती है, सीधे जमीन पर आती है। पराली के धुएँ से आँखों में जलन होती है। साँस लेने में दिक्कत होती है तथा फेफड़ों की बीमारियाँ होने की शिकायतें आ रही है।

किसानों ने बताई मजबूरी 

किसान मजबूरी में खेतों में पराली जला रहे है। सरकार बताए कि किसान पराली को कहाँ लेकर जाये। किसानों के लिए साल में दो फसलें उगाना बहुत जरुरी है, क्योकिं इसी से उनका भरण पोषण होता है। धान की फसल के बाद उन्हें गेहूँ की फसल करने के लिए खेत को खाली करना ही पड़ता है। अगर किसान ऐसा नहीं करेंगे तो किसान के पूरे परिवार को भुखमरी झेलनी पड़ेगी।

पराली जलाएं नहीं, खाद बनाएं

खेतों में पराली जलाने से मिट्टी की ऊपरी सतह जल जाती है जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगर किसान पराली को जमीन में ही नष्ट कर देते हैं और उसका उपयोग अपने खेतों में खाद के रूप में करते हैं, तो उन्हें  कैमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा, और भूमि की उर्वरकता बढ़ेगी। जिससे ज्यादा पानी, खाद, कीटनाशक, दवाईयों का उपयोग नहीं करना पड़ेगा।

पराली जलाने से किसानों को नुकसान 

1. पराली जलाने से किसानों को भी नुकसान होता है। हम सभी जानते हैं कि केचुओं को किसानों का दोस्त कहा जाता है, क्योकिं वे खेतों को एक उर्वरक भूमि में बदल देते हैं, जिससे उसकी उर्वरकता बढ़ जाती है। परन्तु पराली के जलाने से खेतों में केचूएं मर जाते हैं।

2. पराली जलाने से खेत की मिट्टी में पाया जाने वाला राईजोबिया बैक्टीरिया भी मर जाता है। यह बैक्टीरिया पर्यावरण की नाईट्रोजन को जमीन में पहुँचाता है जिससे खेत की पैदावार क्षमता बढ़ती है।

3. राईजोबिया बैक्टीरिया के खत्म हो जाने से किसानों की खेती में नाईट्रोजन वाली खाद ज्यादा मात्रा में डालनी पड़ती है, जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है और किसानों को मिलने वाला लाभ कम हो जाता है।

समस्या का समाधान 

1. पराली जलाने की समस्या का एक समाधान यह है कि धान की फसल को किसान पूरी तरह अच्छे से काटें क्योंकि यदि आधी कटी धान नहीं होगी, तो किसानों को पराली की समस्या का निदान करने के बारे में सोचना ही नहीं पड़ेगा।

2. तकनीकी विकास से अब यह संभव है कि अब पराली का उपयोग सीट (Seat) बनाने में कर सकते हैं।

3. इस पराली को गड्ढों में भरकर पानी डालकर गलाया जा सकता है जिससे कि कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है जो कि खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।

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