गीतांजलि द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

भारत विविधताओं का देश है जहां हर प्रदेश राज्य और हर क्षेत्र की अपनी कुछ विशेषताएं और प्रसिद्धि हैं। यहां पर हर क्षेत्र में अलग-अलग जलवायु, मृदा तथा प्राकृतिक विभिन्नताओं के कारण बहुत विविधता देखने को मिलती है। इन विभिन्नताओं और विविधताओं के प्रभाव फल, फूल और वनस्पतियों पर भी देखने को मिलते हैं। इसीलिए हर क्षेत्र अपने किसी न किसी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध होता है। वैसा ही एक क्षेत्र बिहार का मिथिला है जो अपने मखाना उत्पादन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां पर उच्च गुणवत्ता और पोषक तत्वों वाले स्वादिष्ट मखाने का उत्पादन होता है। आपको जानकर बहुत प्रसन्नता होगी कि मिथिला के मखाने को भारतीय केंद्रीय सरकार द्वारा जीआई (ज्योग्राफिक इंडिकेशन GI) टैग दिया गया है तो आज हम जीआई टैग के बारे में और जानकारी हासिल करेंगे।

जीआई टैग क्या है?

जब हम मिथिला के मखाने को जीआई टैग मिलने की बात कर रहे हैं तो सर्वप्रथम हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि जीआई टैग क्या होता है।

जीआई शब्द का पूर्ण रूप ज्योग्राफिकल इनडिकेशन है। यह एक प्रकार का कानून है जो 1999 में भारत में लाया गया तथा 2003 में कियान्वयन में आया। इसके तहत भारत में अलग-अलग वस्तुओं को जीआई टैग देना शुरू हुआ।

जीआई टैग भौगोलिक सूचक है जिसके तहत किसी एक वस्तु को भौगौलिक पहचान दी जाती है। इसके आधार पर भारत के किसी विशेष क्षेत्र में पाई जाने वाली वस्तु की विशेषता के आधार पर उस वस्तु के उत्पादन का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। जीआई टैग यह दर्शाता है कि उस एक उत्पाद का सबसे बेहतरीन और गुणवत्तापूर्वक उत्पादन किस क्षेत्र में हो रहा है। जीआई टैग वस्तु के उत्पादन करने वाले किसी एक ऐसे राज्य या क्षेत्र को दिया जाता है जहां पर उस वस्तु का उत्पादन सबसे अच्छी तथा अद्भुत गुणवत्ता में हो रहा है।

जीआई टैग मिलने के फायदे

जीआई टैग मिलने के बाद किसानों को विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं। बिहार के मिथिला के मखाने को जीआई टैग मिलने से किसानों को और अधिक लाभ प्राप्त होगा तथा बिक्री में वृद्धि होगी।

जीआई टैग मिलने का मतलब है उसी स्थान के मखाने को एक विशेषता एवं प्रसिद्धि प्राप्त होना। अब बिहार के साथ-साथ मिथिला के मखाने दूसरे राज्यों के लोग भी बहुत अधिक मात्रा में उपयोग करेंगे और बिहार में रोज़गार बढ़ेगा।

मिथिला के मखाने को जीआई टैग मिलने से वहां के मखाने पूरे भारत में प्रसिद्ध हो जाएंगे तथा सबसे अधिक गुणवत्तापूर्ण माना जाने लगेगा।

कैसे प्राप्त होता है जीआई टैग?

अगर हम जीआई टैग के बारे में जान रहे हैं तो हमें यह भी जानना होगा कि जीआई टैग प्राप्त कैसे किया जाता है। सबसे पहले किसी एक क्षेत्र में प्रसिद्ध और सबसे अधिक गुणवत्तापूर्वक उत्पादक को जीआई टैग दिलवाने के लिए उस क्षेत्र के सारे किसान एसोसिएशन या समुदाय को उस वस्तु को जीआई टैग दिलवाने के लिए अप्लाई करना होता है।

दूसरे चरण में उन्हें यह बताना होता है कि उस क्षेत्र के पदार्थ को जीआई टैग क्यों दिया जाए। उन्हें उस पदार्थ की विशेषताएं पूरे सबूत और साक्ष्यों के साथ दिखाना होता है और साबित करना होता है कि उनके क्षेत्र में उत्पादित पदार्थ भारत के अन्य क्षेत्रों से कैसे अलग और अद्भुत है।

इसके बाद जीआई टैग देने वाली संस्था उस पदार्थ और उस क्षेत्र में उसके उत्पादन के यूनिकनेश अर्थात अद्भुतता के बारे में पूर्ण जांच और परीक्षण करती है जिसके द्वारा यह तय होता है कि कुछ भौगोलिक कारकों के कारण उस विशिष्ट पदार्थ का उत्पादन उस राज्य से अच्छा अन्य राज्यों में नहीं हो सकता है।

साथ ही यह भी तय किया जाता है कि जलवायु और भौगोलिक स्थिति अर्थात मृदा, जल एवं वातावरण का उस क्षेत्र में उस वस्तु और पदार्थ के उत्पादन में कैसे विशेष योगदान है, इसके बाद वस्तु को जीआई टैग प्राप्त होता है।

किन उत्पादों को दिया जाता है जीआई टैग?

अलग-अलग देश अपने उत्पादों स्थान के आधार पर सुरक्षित एवं संरक्षित रजिस्ट्रेशन के लिए जीआई टैग देते हैं। भारत में जीआई टैग विशिष्ट फसल एवं विशिष्ट पदार्थ एवं एक विशिष्ट स्थान पर निर्मित मानव निर्मित पदार्थों को दिया जाता है, साथ ही किसी विशेष गुणवत्ता वाले खाघ पदार्थ को भी जीआई टैग प्राप्त होता है।

कुछ उदाहरण है उत्तराखंड राज्य के बासमती के चावल, भागलपुर के आम, बनारस की साड़ी कश्मीर का पश्मीना शाल, कर्नाटका का सिल्क अगर खाद्य पदार्थों की बात करें तो पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला, तिरुपति का लड्डू, राजस्थान की भुजिया आदि को जीआई टैग मिला है।

बिहार के अन्य जीआई टैग पदार्थ

बिहार राज्य अपने विशेष खाद्य पदार्थों और अपने संस्कृति के लिए बहुत प्रसिद्ध है। बिहार में पहली बार किसी पदार्थ को जीआई टैग नहीं मिला है इससे पहले भी बहुत सारे अन्य पदार्थों को उनकी विशिष्टता और प्रसिद्धि के आधार पर जीआई टैग प्राप्त हो चुका है जिसमें मुजफ्फरपुर के शाही लीची, मधुबन के मधुबनी पेंटिंग, भागलपुर के जर्दा आम और कतरनी चावल आदि को जी आई टैग मिला हुआ है।

बिहार के मिथिला के मखाने को जीआई टैग दिलवाने के लिए किसान बहुत लंबे समय से संघर्ष कर  रहे थे। लगभग चार-पांच साल पहले ही जीआई टैग के लिए अप्लाई किया जा चुका था इसलिए यह खबर बिहार के संपूर्ण निवासियों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है।

आशा है यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। हम इसी प्रकार के ज्ञानवर्धक और समसमायिक विषयों से संबंधित लेख लेकर जल्द मिलेंगे।

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