अभिषेक झा द्वारा लिखित – कक्षा 12 का छात्र

जैसा कि हम लोग जानते हैं कि पुराने समय से ही भारत को कला और संस्कृति का देश माना गया है| आप सोच रहे होंगे मधुबनी क्या है? मधुबनी भारत के बिहार राज्य में स्थित एक जिला है|मधुबनी दो शब्दों से मिलकर बना है, मधु और बनी |मधु का मतलब है-शहद और बनी का मतलब है- जंगल यानी शहद का जंगल|यह पेंटिंग बिहार के मधुबनी जिले की एक स्थानीय कला है, जिसकी वजह से इस पेंटिंग का नाम मधुबनी पेंटिंग रखा गया|मधुबनी पेंटिंग को मिथिला पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है| यह पेंटिंग बिहार की एक प्रमुख चित्रकला है|कहां जाता है कि इस कला की शुरुआत रामायण के युग में हुई थी, उस समय राजा जनक ने मां सीता के विवाह के अवसर पर इसे गांव की औरतों से बनवाया था| मधुबनी पेंटिंग में ज्यादातर कुल देवी देवताओं का चित्रण देखने को मिलता है|यह पेंटिंग दो प्रकार की होती है:——

  • भित्ति चित्र|
  • अरिपन या अल्पना|

आपको बता दें कि मधुबनी पेंटिंग को भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक माना गया है|पहले इस पेंटिंग को महिलाओं के द्वारा केवल दीवारों/ पत्थरों पर ही बनाया जाता था, परंतु वक्त के साथ-साथ इसमें परिवर्तन होता चला गया और अब इसे कपड़ों और पेपरों पर भरपूर मात्रा में बनाया जाने लगा है|साथ ही अब यह कला महिलाओं तक ही सीमित नहीं रही,बल्कि पुरुष भी इस कला में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं|

मधुबनी पेंटिंग की खासियत—

  • आपको बता दें कि मधुबनी पेंटिंग में जिन रंगों का उपयोग किया जाता है,उन्हें घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है|जैसे- पीले रंग के लिए हल्दी, हरे रंग के लिए केले के पत्ते, लाल रंग के लिए पीपल की छाल का, सफेद रंग के लिए दूध या फिर चुना आदि चीजों का उपयोग किया जाता है|
  • पेंटिंग करने के लिए और चित्र बनाने के लिए केवल माचिस की तीलियों और बांस की कलम का इस्तेमाल किया जाता है|साथ ही रंगों की पकड़ को बरकरार रखने के लिए रंगों में बबूल के पेड़ की गोंद को मिलाया जाता है|
  • मधुबनी पेंटिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिस कागज पर इसे बनाया जाता है,उसे अपने हाथों से ही तैयार किया जाता है|कागज को तैयार करने के लिए उस कागज पर गोबर का घोल और बबूल के पेड़ का गोंद एक साथ मिलाया जाता है और उसके बाद सूती के कपड़े के सहारे उस घोल को पूरे पेपर पर लगाया जाता है|इसके बाद उसे धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है|जिसके बाद ही उस पर चित्र बनाया जाता है|

मधुबनी पेंटिंग का इतिहास और शुरुआती दौड़

आपको बता दें कि साल 1934 से पहले मधुबनी पेंटिंग को केवल गांव की एक लोककला के रूप में जाना जाता था|लेकिन साल 1934 में मिथिलांचल में आए भूकंप के बाद से यह केवल लोककला के तौर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय कला के तौर पर जाना जाने लगा|कहा जाता है कि जब विलियम आर्चर(जो उस समय मधुबनी के ब्रिटिश ऑफिसर थे) भूकंप से हुए भारी भरकम नुकसान को देखने के लिए गए तब उन्होंने वहां पर अलग-अलग प्रकार की खूबसूरत पेंटिंग देखि|जो उनको एकदम नई और अनोखी लगी|उसके बाद उन्होंने उन सभी पेंटिंग्स की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें निकालनी जिसे मधुबनी पेंटिंग के इतिहास में अब तक की सबसे पुरानी तस्वीरों में से माना जाता है|साल 1949 में उन्होंने ‘मार्ग’ के नाम से एक आर्टिकल लिखा था,जिसमें उन्होंने मधुबनी पेंटिंग की खासियत के बारे में विस्तार से बताया था| उनके इस आर्टिकल के बाद पूरी दुनिया को मधुबनी पेंटिंग की सुंदरता और खासियत के बारे में पता चलने लगा|

मधुबनी पेंटिंग की महान महिला विभूतियां कौन है? जिन्होंने इस कला में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है?जाने|

मधुबनी पेंटिंग्स को बनाने में अनेक महान महिला विभूतियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है|उन्हीं के प्रयासों की वजह से आज मधुबनी पेंटिंग को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक जगहों पर पहचाना जाता है|मधुबनी पेंटिंग को ऑफिशियल तौर पर पहचान उस समय मिला जब साल 1969 में बिहार सरकार के द्वारा सीता देवी को मधुबनी पेंटिंग के लिए सम्मानित किया गया था|साथ ही सीता देवी को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए ‘बिहार रत्न’ और ‘शिल्प गुरु’ सम्मान से भी नवाजा गया|इसके बाद साल 1975 में जगदंबा देवी, साल 1984 में सीता देवी और साल 2011 में महासुंदरी देवी को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए पदम श्री जैसे बड़े सम्मान से नवाजा गया|साथ ही बउआ देवी कोसाल 1984 में नेशनल अवार्ड और साल 2017 में पदम श्री से सम्मानित किया गया था| इनके अलावा भी अनेक महिलाओं को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए सम्मानित किया गया है|