प्राची द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

जब 1 फरवरी की सुबह म्यांमार के लोग जागे, तो वे सब हैरान रह गए क्योकिं उनके देश में रातों-रात सेना द्वारा तख्तापलट हो गया और 1 वर्ष के लिए देश में आपातकाल लगा दिया गया है। भारत समेत विश्व के अनेक दशों ने इस तख्तापलट का विरोध किया है।

● सेना का तख्तापलट

नवंबर 2020 में म्यांमार में आम चुनाव हुए थे और आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी को दूसरी बार जीत मिली।

उनकी नई सरकार की पहली संसदीय बैठक 1 फरवरी को होनी थी, उसी दिन सेना ने तख्तापलट कर दिया। रक्षा सेवाओं के कमांडर-इन-चीफ मिन आंग हलिंग ने चुनाव आयोग पर आम चुनावों में धांधली के आरोप लगाए हैं। सेना का आरोप है कि आंग सान सू की की पार्टी ने चुनाव आयोग की सहायता से वोटों की धांधली करवाई है। पर चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया है। इसलिए सेना ने कहा की ये सरकार मान्य नहीं है, इसलिए अब देश का कार्यभार सेना संभालेगी।

● कौन है आंग सान सू की?

आंग सान सू की म्यांमार के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले आंग सान की पुत्री हैं, इनका जन्म 19 जून 1945 को म्यांमार में हुआ। परन्तु म्यांमार में सैनिक शासन की वजह से उन्होने अपनी पढ़ाई भारत से की है। उसके बाद वे ऑक्सफोर्ड पढ़ने के लिए चली गई। म्यांमार में 5 दशकों तक सेना का शासन रहा है। आंग सान सू की 1988 में म्यांमार लौटीं और उन्होने लोकतंत्र स्थापना हेतु सेना के विरुद्ध आन्दोलन किया। उनकों सेना ने नज़रबन्द कर दिया। इनको 1991 में नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया परन्तु नजरबंद होने के कारण आंग सान सू की यह पुरस्कार नहीं ले पाईं। लेकिन 2012 में उन्हें रिहा कर दिया गया तो उन्होने यह पुरस्कार स्वीकार किया। 2015 में जब आम चुनाव हुए तो आंग सान सू की म्यांमार की स्टेट काउन्स्लर बनी।

● चीन की भूमिका

म्यांमार के इस तख्तापलट में चीन की भूमिका पर सबको संदेह है। चीन के म्यांमार की सेना से अच्छे संबंध हैं। चीन ने म्यांमार में बहुत ज्यादा निवेश भी किया है और ज्यादातर लोगों का मानना है कि चीन सेना की मदद से म्यांमार का फायदा उठाना चाहता है।

भारत के चार राज्यों की सीमा म्यांमार से लगती है और म्यांमार भारत का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है। भारत ने अभी हाल ही में म्यांमार को 15 लाख कोविड वैक्सीन भेजी हैं। भारत ने म्यांमार में हुए सेना के तख्तापलट का विरोध किया है।

म्यांमार में तख्तापलट से विश्व में एक बार फिर लोकतंत्र की हार हुई है। सेना का यह कदम बिल्कुल भी सही नहीं है। अगर चुनावों में धांधली हुई थी तो इसकी जांच होनी चाहिए थी और दोबारा चुनाव होने चाहिए थे। सेना द्वारा तख्तापलट देश को बचाने का कोई उपाय नहीं है।

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