प्राची द्वारा लिखित, 20 साल की छात्रा

तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है छात्र। ऐसा छात्र जो कि इस्लामिक कट्टरपंथ में विश्वास रखता हो। आज अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है, उसका जिम्मेदार कौन है? किसकी लापरवाही की वजह से लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में आ गई? अथवा क्या तालिबान जैसे संगठन सत्ता चला सकते हैं?

जानेगें इन सभी विषयों को विस्तार से।

अमेरिका की भूमिका- 

जब 9/11 का आतंकी हमला अमेरिका में हुआ, तो उस हमले से पूरा विश्व दहल गया। इस हमले के बाद से ही अमेरिका ने आतंकवाद को खत्म करने का निर्णय लिया। इस हमले में शामिल आतंकवादी संगठन अलकायदा को खत्म करने के लिए अमेरिका और NATO  के देशों ने अपनी सैनिकों को अफगानिस्तान में तैनात किया और आतंकवादियों को अफगानिस्तान  से खदेड़ दिया।

1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार रही। परन्तु अमेरिका का नियंत्रण होने के बाद 2004 में हामिद करजई राष्ट्रपति बने और उनके बाद अशरफ गनी वहाँ के नए राष्ट्रपति चुने गए।

2020 में अमेरिका ने तालिबान के साथ कतर के दोहा में दोहा समझौता किया, जिसके अन्तर्गत यदि तालिबान अपनी आंतकवादी गतिविधियों को बंद करेगा अथवा अमेरिकी और NATO सेना पर हमला नहीं करेगा, तो अमेरिका और NATO अपनी सेना को वापिस बुलाने और आर्थिक प्रतिबंध हटाने पर विचार करेगा।

अमेरिका का यही फैसला तालिबानियों के पक्ष में रहा। और जैसे ही उन्हें लगा अब अमेरिका का नियंत्रण अफगानिस्तान पर कमजोर हो रहा है, उनहोंने धीरे-धीरे अफगानिस्तान के सभी प्रांतों पर कब्जा कर लिया।

अफगानी सेना की भूमिका-

अफगानिस्तान की सेना की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही थीं, तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों की जड़ों को कमजोर करने में। परन्तु दोहा समझौते के बाद अमेरिकी और NATO सेना की वापसी ने वहाँ की सेना को निराश कर दिया था।

साथ ही साथ सूत्रों के अनुसार वहाँ की सेना में भ्रष्टाचार की वजह से सैनिकों को पिछले कई महीनों से तन्ख्वाह नहीं मिली थी। इसलिए जब तालिबान ने शहरों पर कब्जा करने के लिए हमला किया तो वहाँ के सैनिक अपनी जान की परवाह करते हुए, उन्होनें तालिबानियों के सामने हथियार डाल दिए।

राष्ट्रपति का पलायन-

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी थे। वो 2014 से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति रहें हैं। अफगानिस्तान के लोगों में गनी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं। लेकिन जब उनको पता चला कि तालिबान सभी प्रांतों पर कब्जा करते हुए धीरे-धीरे काबुल की ओर बढ़ रहा है, तो वे अपनी जान बचाते हुए अपने परिवार से साथ देश छोड़कर चले गए। रिपोर्टों के अनुसार वे तजाकिस्तान गए थे परन्तु तजाकिस्तान ने उनको अपना विमान उतारने की अनुमति नहीं दी, इसलिए वे ओमान की तरफ चले गए।

अशरफ गनी के अफगानिस्तान छोड़ने से वहाँ के लोंगो में भी देश छोड़ने के लिए हड़कंप मच गया।

विश्व की प्रतिक्रिया –

तालिबान ने प्रेस कांफ्रेंस कर पूरे विश्व को यह यकीन दिलाने की कोशिश की है कि वह अब बदल गया है और अब तालिबान अफगानिस्तान में शांति पूर्ण तरीके से अपनी सरकार चलाएगा।

तालिबान की वापसी से पकिस्तान, चीन और तुर्की जैसे देशों ने उनकी सरकार को मान्यता प्रदान कर दी है। जबकि रुस ने कहा है कि वह अभी इस पर विचार करेगा । कनाडा, ब्रिटेन और भारत ने अभी तक कोई भी प्रतिक्रया नहीं दी है और भविष्य के हालातों को देखते हुए, निर्णय लिया जाएगा।

काबुल एयरपोर्ट  के पास बम धमाका- 

26 अगस्त 2021के दिन काबुल एयरपोर्ट के पास दो बम धमाके हुए जिनमें सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गए और घायल हुए। इस हमले में 13 अमेरिकी सैनिक भी मारे गए।

हमले की जिम्मेदारी ISKP आतंकवादी संगठन ने ली है।

तालिबान की वापसी से हजारों की संख्या में लोग अफगानिस्तान छोड़कर पलायन कर रहें हैं। एयरपोर्ट पर जहाज में चढ़ने के लिए भीड़ मारामारी भी कर रही है। कुछ लोग तो  अमेरिकी हवाई जहाज की छत पर जा कर बैठ गए, और जब हवाईजहाज उड़ा तो उनकी नीचे गिरकर मृत्यु हो गई।

दुनिया ने इससे पहले ऐसे भयानक तस्वीरें नहीं देखी थी। ऐसी घटनाओं ने सभी के हृदय को झंझोड़ दिया है। लोग तालिबान की क्रूरता और भय के कारण अपनी मातृभूमि छोड़ रहे हैं।

ऐसी घटनाएं मानवता को शर्मसार करती हैं।

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