कक्षा 9 की छात्रा द्वारा लिखित

जहां सारे देश COVID-19 महामारी से लड़ रहे हैं, वहाँ एक देश सिर्फ अकेले कोरोना वाइरस से नहीं लड़ रहा । यमन में लोग न केवल महामारी का सामना कर रहे हैं बल्कि 2015 से चल रहे गृह युद्ध का भी सामने कर रहे हैं । युद्ध के कारण 75% से ज़्यादा लोग गरीबी में रह रहे हैं और लगभग 17 लाख लोगों को भोजन की कमी है । COVID-19 की वजह से 950 मामले और 250 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।

गृहयुद्ध यमन के राष्ट्रपति अब्दरबबू मंसूर हादी की सरकार और हौथी आंदोलन (एक इस्लामी राजनीतिक आंदोलन) के विद्रोहियों के बीच में हो रहा है । हौथिस ने वर्तमान सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है और वो चाहते हैं कि ईंधन की कीमत कम हों और पश्चिमी प्रभाव भी कम रहे । 2014 में, हौथिस ने यमन की राजधानी सना पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति को देशनिकाला दे दिया । विद्रोहियों को भगाने के लिए सऊदी अरब के हमलों ने देश को तबाह कर दिया । युद्ध में 100,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है, जिनमें से कई नागरिक हैं । बार बार हमला होने की वजह से लोग अपने घरों से बेघर हो गए हैं । लोगों को हैजा महामारी और मच्छर से होने वाली बीमारियाँ जैसे कि डेंगू, मलेरिया का भी सामना करना पड़ रहा है । जो बमबारी और हमले से नहीं मरते, उन्हे बीमारी और भुखमरी झेलनी पड़ती है । यूएन ने यमन की स्थिति को सबसे खराब मानवीय संकट करार दिया है ।

जब लाखों लोग घरों से बेघर हो रहे हैं, अकाल और कुपोषण का सामना कर रहे हैं , यूएन का कहना है कि युद्ध को रोकना ही लोगों की पीड़ा खतम करने का एकमात्र तरीका है । कोरोना वाइरस के फैलने से यमन की नाजुक स्वास्थ्य प्रणाली बिलकुल खतम हो जाएगी । महामारी का सही असर तो पता ही नहीं क्योंकि डॉक्टरों का कहना है कि हौथी विद्रोहियों ने उन्हे सही मामले छिपाय रखने के लिए धमकी दी है । अस्पतालों में बेड, वेंटिलेटर और टेस्टिंग किट की कमी है । 50% से अधिक लोगों के पास हाथ धोने की सुविधा नहीं है । लाखों लोग पूरी तरह से यूएन की सहयता पर निर्भर हैं, जो अभी वर्तमान में covid-19 को रोकने के लिए स्वच्छता किट प्रदान कर रही है जिसमें साबुन जैसी ज़रूरी चीज़ें होती हैं । हालांकि, यूएन ने यही भी कहा है कि जब तक दान में तेज़ व्रद्धि नहीं होगी, 4 लाख से ज़्यादा लोग आवश्यक सहयता से वंचित रहेंगे ।

Covid-19 महामारी ने सिर्फ स्वस्थ्य प्रणाली को ही प्रभावित नहीं किया है । युद्ध की वजह से 2 लाख से ज़्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा पाए । अब यमन में 7 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं । अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव से खाने की चीजों के दाम बढ़ गए हैं, और यूएन का कहना है कि विभिन्न अन्तराष्ट्रिय एजेंसियों के द्वारा दिये गए फ़ंड की कमी ने इस अकाल को और बदतर बना दिया है । खाने की बढ़ती कीमतों के साथ नौकरियों के जाने से लोगों के संगर्ष को और बढ़ा दिया है ।

मार्च में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी घोषणा की कि यमन में राहत प्रदान करने के लिए दिये जाने वाले दान को वो कम कर रहे हैं । इसका कारण उन्होने यह बताया कि वह धन यमन के नागरिकों को पहुँचने की वजाए हौथी के विद्रोहियों के द्वारा अपने कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है । अप्रैल में अमेरिका के डबल्यूएचओ से हट जाने की वजह से भी यमन के राहत कार्यों पर काफी असर पड़ा क्योंकि डबल्यूएचओ मानवीय सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । लोगों ने फंडिंग में कटौती करने के ट्रम्प के निर्णय की आलोचना करी क्योंकि उन्हे लगा कि अमेरिका भी कहीं ना कहीं युद्ध से पहुँचने वाली क्षति के लिए जिम्मेदार है । अमेरिका ने सऊदी अरब को लड़ाकू विमान और हथियार पहुंचाए यमन पर हमला करने के लिए, जिसकी वजह से नागरिकों के अस्पताल और सुविधाएं नष्ट हो गई ।

जहाँ सारी दुनिया महामारी को काबू पाने पर लगी है, यमन के नागरिकों की चिंता यह है कि उन्हे अपना अगला भोजन कैसे मिलेगा । लगभग 80% आबादी पूरी तरह से अंतराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है जो कि पिछले महीनों में काफी कम हो गई है । यूएन कहता है कि यमन को मदद करने वाले विभिन्न संगठन अभी भी राहत प्रदान करने के लिए 2.4 बिलियन डॉलर के अपने लक्ष्य से एक बिलियन डॉलर दूर हैं । छात्र अपने स्कूल में ऐतिहासिक युद्धों के बारे में पढ़ते हैं लेकिन उनके लिए यह भी जानना उतना ही महत्वपूर्ण है कि उनकी ही उम्र के बच्चों को युद्ध से तबाह देश में इस तरह के संगर्ष करने पड़ रहे हैं । हमे यमन के संकट को एक दूर की समस्या नहीं समझनी चाहिए बल्कि मानवों के प्रति एक संकट की तरह देखना चाहिए ।