महक द्वारा लिखित

लिपट जाता हूँ माँ से और
मौसी मुसकुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल क़हत हूँ
हिन्दी मुसकुराती है …..

हिन्दी भाषा नहीं, भावों
की अभिव्यक्ति है
यह मात्रभाषा पर मर
मिटने की शक्ति है….

सगी बहनों का जो रिश्ता
है उर्दू और हिन्दी में,
कही दुनिया की दो ज़िन्दा
जुबानों में नहीं मिलता….

सलवार सूट पर मुझे
उसके माथे पे छोटी सी
बिंदी पसंद है,
हाँ मुझे अंग्रेजी से ज़्यादा
हिन्दी पसंद है…

आज स्याही से लिख दो
तुम अपनी पहचान,
हिन्दी हो तुम, हिन्दी से
सीखो करना प्यार…..