गरिमा पाल द्वारा लिखित

किसी भी समाज में भाषा का स्थान महत्वपूर्ण होता है। भाषा के जरिए एक व्यक्ति अपनी भावनाओं और संवेदनाओं को दूसरे व्यक्ति तक संप्रेषित करता है।

हिंदी भारत की प्राचीन भाषाओं में से एक है और इसका इतिहास 1000 साल से भी पुराना है। हिंदी का इतिहास उतना ही रोचक है, जितना हिंदी का साहित्य है।  शोध के अनुसार, ईसा के 1000 से लेकर 1400 ई. तक के कालखंड के दौरान  हिंदी भाषा का निर्माण हो रहा था और हिंदी साहित्य भी धीरे-धीरे विकसित हो रहा था।

इस काल के दौरान बौद्घ धर्म भी अपने चरम पर था। यहां तक कि उस समय के सिद्धों और नाथों के विचार दर्शन पर भी बौद्ध कालीन संस्कृति की छाप थी। सिद्धों ने अपने साहित्य में जिस भाषा शैली का प्रयोग किया, उसे “संध्या भाषा” कहा गया और देखा जाए तो, इसी संध्या भाषा में हिंदी का आदि रूप छुपा था। वही सिद्धों से लेकर कबीर तक की जो संस्कृति थी, जीवन शैली थी, विचार दर्शन था, आध्यात्मिक विचार थे, सबका पोषण और संरक्षण आदिकालीन हिंदी के कारण ही संभव हो सका था।

उस समय के हिंदी साहित्य के कवियों की अधिक जानकारी नहीं मिलती है, कुछ एक के विषय में ही जानकारी उपलब्ध है उनमें से एक हैं राहुल सांकृत्यायन सरहपा और आज के साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन सरहपा को पुरानी हिंदी का कवि मानते हैं।

यही नहीं हिंदी भाषा स्वतंत्रता संग्राम में भी स्वाधीनता के विचारों की संवाहिका बनी। उस समय के कवियों में शिरोमणि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने हिंदी साहित्य के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी। महात्मा गांधी ने भी हिंदी और खादी को महत्व दिया।

स्वतंत्रता के बाद हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला लेकिन उसे भारतीय संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 में “संघ की परिभाषा” का दर्जा दिया गया। हिंदी भाषा को संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 आजाद भारत की मुख्य भाषा के रूप में पहचान दी गई थी इसलिए 1952 की घोषणा के अनुसार  हर 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

हिंदी भाषा अलग-अलग बोलियों में भारत के कई क्षेत्रों में बोली जाती है। हिंदी क्षेत्र की प्रमुख बोलियां है – कुमायूंनी, गढ़वाली, हिमाचली, हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजी, अवधी, बघेली, बुंदेलखंडी और भोजपुरी। और इन बोलियों की अपनी उप बोलियां हैं। इसके लिए एक कहावत भी लोकप्रिय हैं- “कोस कोस पर पानी बदले चार कोस पर वाणी”। आज ज्यादातर हम सब लिखने में मानक हिंदी का प्रयोग करते हैं।

हिंदी न केवल अपने देश में बल्कि विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की भी भारतीय संस्कृति को बचाए रखने का प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिए ट्रिनिडाड और टोबैगो में रह रहे भारतवंशी लोगों की समस्या।

गौर फरमाए, कहीं ना कहीं आज हिंदी की पहचान खोती हुई नजर आती है, ऐसा मैंने इसलिए कहा है कि कामकाज के स्तर पर हिंदी को दूसरा स्थान दिया जाता है और अंग्रेजी को पहला। उदाहरण, मोबाइल में कॉल पर भाषा चुनने के लिए जो विकल्प दिए जाते हैं उसमें कहते हैं अंग्रेजी के लिए एक दबाएं और हिंदी के लिए दो। बड़े स्तर पर देखें तो आज साक्षात्कार के लिए व्यक्ति से यह आशा की जाती है की वह अंग्रेजी में बोले।                                                                                                   अंग्रेजी बोलना “स्टैंडर्ड” है आज और हिंदी बोलने वालों को नजरें झुका कर चलना पड़ता है। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी विद्यार्थियों को अंग्रेजी विषय पर ज्यादा ध्यान देने को कहा जाता है। हर जगह अंग्रेजी को पहला इंप्रेशन दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त करना गलत है, बस मेरा यही तात्पर्य है कि हिंदी की महत्ता को ना भूलें।

याद रखें, आज भी हिंदी भारत की संपर्क भाषा है और मातृभाषा भी है। हिंदी ने हर बदलाव को अपने अंदर समाहित किया है और जनमानस की प्रगति में सहयोग दिया है।

न भूलें, हिंदी के शब्दों का उच्चारण सही से करना हमारा कर्तव्य है क्योंकि शब्दों को गलत व्यवहार में लाने से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। हिंदी का सम्मान और अस्तित्व आज भी है, पर सीमित क्षेत्र तक। इसलिए इस लेख के माध्यम से मेरा यही उद्देश्य है कि हिंदी के इतिहास को जानकर, उसकी महत्ता को पहचान कर और उसके औचित्य को समझकर, हिंदी को अपने व्यवहार में लाएं।