अभिषेक द्वारा लिखित, 18 साल का छात्र

सुंदरलाल बहुगुणा एक मशहूर पर्यावरणविद व भारतीय कार्यकर्ता थे। उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के टिहरी जिले में मरोड़ा नामक स्थान पर हुआ था। वे बहुत ही संवेदनशील और गांधीवादी स्वभाव वाले व्यक्ति थे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र (13 वर्ष की आयु) में राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियां शुरू कर दी थीं। परंतु साल 1956 में शादी होने के तुरंत बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन से अपनी दूरी बना ली लेकिन वह सामाजिक गतिविधियों के प्रति हमेशा से सहज रहे। उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और लोगों की सेवा करने के लिए पहाड़ियों के बीच में ही एक आश्रम खोला। इतना ही नहीं उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब बंदी के खिलाफ मोर्चा भी चलाया। इसके बाद उन्होंने 1960 के दशक में अपना पूरा ध्यान वन-संरक्षण यानी पेड़ों की सुरक्षा पर केंद्रित किया। उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन थी जिसके कारण वे विश्वभर में ‘वृक्ष मित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। तो आइए जानते हैं ‘चिपको आंदोलन’ के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य।

चिपको आंदोलन क्या था? और क्यों किया गया था?

चिपको आंदोलन पर्यावरण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसकी शुरुआत भारत के उत्तराखंड राज्य में ग्रामीणों के द्वारा वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए शुरू किया गया था। यह आंदोलन साल 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट व श्रीमती गोरा देवी के नेतृत्व में शुरू हुआ था। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इसमें महिलाओं ने भी काफी मात्रा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था और देखते ही देखते यह आंदोलन एक दशक के अंदर पूरे उत्तराखंड क्षेत्र में फैलता चला गया। साल 1972 के बाद पेड़ों की कटाई का काम जोरों शोरों से चलने लगा। सरकार का उद्देश्य पेड़ों को काटकर यातायात के लिए सड़क का निर्माण करना था जिसके लिए पेड़ों को काफी भारी मात्रा में काटा जा रहा था। पेड़ों को ऐसे काटते देख स्थानीय लोगों ने उनका विरोध किया। इस विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट जैसे लोग भी सम्मिलित हुए जिसके बाद यह आंदोलन और तेज हो गया। सरकार के इस फैसले के प्रति जगह जगह पर महिला मंगल दल बनाए गए। साल 1972 में रेणी गांव में भी ‘महिला मंगल दल बनाया गया जिसकी अध्यक्षता गौरा देवी के हाथों में सौंपी गई। महिला मंगल दल का प्रमुख कार्य घर-घर घूमकर स्थानीय लोगों को पेड़ों के महत्व व पर्यावरण के प्रति जागरूक करना था। परंतु इन सब कामों का सरकार पर कोई भी असर नहीं हुआ साल 1973 की शुरुआत में यह तय किया गया कि रेणी गांव के ढाई हजार से भी अधिक पेड़ों को काटा जाएगा। इसका पता लगते ही गांव के लोगों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। 23 मार्च, 1973 को चारों तरफ पेड़ों की कटाई के विरोध में रैलियां निकाली गईं जिससे गांव के लोग तो जागरूक हुए परंतु सरकार ने एक भी ना मानी। पेड़ों की कटाई के लिए ठेकेदारों को ठेका दे दिया गया। ठेकेदार पेड़ काटने के लिए रेणी गांव पहुंचे मगर ‘गौरा देवी’ के नेतृत्व में विशेषकर वहां की महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं और कहने लगीं ‘पहले हमें काटो, फिर पेड़ को काटना’। इस तरह ‘गौरा देवी’ के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं सहित अन्य लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर इस मिशन को असफल कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार (तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी) को अपना आदेश वापस लेना पड़ा और इस इलाके में पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए रोक लगा दिया गया। यह आंदोलन इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसे ‘चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाने लगा। इस आंदोलन की वजह से ही साल 1980 का वन संरक्षण अधिनियम व केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन संभव हो सका।

टिहरी बांध का आंदोलन

केवल इतना ही नहीं सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के निर्माण का भी बढ़-चढ़कर विरोध किया। इसके लिए उन्होंने 84 दिन लंबा अनशन रखा और निर्माण के आखिरी चरण तक डटे रहे। उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में विलीन(लुप्त) हो गया। साथ ही उन्होंने टिहरी राजशाही का भी कड़ा विरोध किया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इतना ही नहीं बहुगुणा हिमालय में होटलों के बनने व लग्जरी टूरिज्म के प्रखर विरोधी थे। सुंदरलाल बहुगुणा ने विश्व के कई देशों जैसे- जर्मनी, जापान, अमेरिका, मैक्सिको, इंग्लैंड, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, स्विजरलैंड व ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों में जाकर पद यात्राएं की और प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण का संदेश फैलाकर लोगों को जागरूक किया।

सुंदरलाल बहुगुणाको उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए अनेकों पुरस्कारो एवं सम्मानों से भी पुरस्कृत किया गया जैसी कि:

  • सुंदरलाल बहुगुणा को साल 1981 में ‘पदम श्री सम्मान से पुरस्कृत किया गया लेकिन उन्होंने इसे लेने से यह कहकर मना कर दिया था की जब तक पेड़ों का कटना बंद नहीं होगा तब तक वह यह पुरस्कार नहीं लेंगे।
  • साल 1983 में उनको चिपको आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए ‘सिंधवी स्मारक ट्रस्ट’द्वारा सम्मानित किया गया। साथ ही उन्हें इसी साल ‘चिपको आंदोलन’ के लिए राइट लाइवलीहुड पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया।
  • फिर साल 1985 में उन्हें रचनात्मक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।
  • और साल 1987 में उन्हें पर्यावरण सुरक्षा के लिए शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार से नवाजा गया।
  • इसके बाद साल 1989 में उन्हें आईआईटी रुड़की द्वारा डॉक्टरेट ऑफ सोशल साइंसेज’ की मानक उपाधि प्रदान की गई।
  • इतना ही नहीं साल 2009 में सुंदरलाल बहुगुणा को उनके कामों के लिए पदम विभूषण जैसे उच्च पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया।

बहुत ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज मशहूर पर्यावरणविद व चिपको आंदोलन के प्रणेता माने जाने वाले ‘सुंदरलाल बहुगुणा जी हमारे बीच नहीं हैं। उनका 21 मई, 2021 को कोरोना की वजह से 94 साल की उम्र में निधन हो गया। सूत्रों के मुताबिक 8 मई, 2021 को वह कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे, जिसके बाद उन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था। जहां पर उन्होंने 21 मई, 2021 को दोपहर 12 बजकर 5 मिनट पर अपने जीवन की अंतिम सांस ली। खासतौर पर इस पूरे लेख से हमें यह सीख मिलती है कि हमें पेड़ों को काटने की वजाय़ ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए क्योंकि पेड़ हैं तो हम हैं, पेड़ नहीं तो हम नहीं।

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