कक्षा 10 की छात्रा द्वारा लिखित

हम मनुष्य जिस तरह से दुनिया को देखते हैं, वह हर पल समय के साथ बदलता है। दुनिया कैसे चलती है, यह समझना काफी मुश्किल है और यह एक ऐसा विषय है जिस पर सदियों से बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग चर्चा और बहस करते आ रहे हैं…

हम मनुष्य जिस तरह से दुनिया को देखते हैं, वह हर पल समय के साथ बदलता है। दुनिया कैसे चलती है, यह समझना काफी मुश्किल है और यह एक ऐसा विषय है जिस पर सदियों से बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग चर्चा और बहस करते आ रहे हैं । “आदर्श समाज कहते किसे हैं?” “हम एक ऐसी दुनिया कैसे बनाएँ जहाँ सभी के पास समान अधिकार हो?”

यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्होने सदियों से मानव जाती को परेशान किया हुआ है । हालांकि यह सबको बहुत आदर्शवादी लग सकता है, लेकिन एक आदर्श समाज बनाने का प्रयास करने के लिए बहुत से संघर्षों को जन्म हुआ । “किस तरह की सरकार की ज़रूरत होगी एक आदर्श समाज बनाने के लिए?” “कैसी राजनीतिक विचारधारा एक आदर्श समाज के साथ जाएँगी?” यह सभी सवाल सुनने में काफी अजीब लगते हैं और इनका जवाब लोगों की व्यक्तिगत राय के मुताबिक अलग अलग भी हो सकता  है । फिर अचानक एक विचारधारा सामने आती है जो समाज को बदल देती है और लोगों को दोबारा सोचने पर मजबूर कर देती है कि दुनिया कैसी होनी चाहिए । समाजवाद एक ऐसा विषय है जिसने न सिर्फ विश्व इतिहास को आकार देने में बल्कि आज जिस समाज में हम रहते हैं उसमें भी एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई है ।

सरल शब्दों में कहें तो समाजवाद उस सरकार का रूप है जो समाज के हर एक स्तर के बीच समानता लाने की कोशिश करती है । समाजवादियों का मानना है कि समानता बनाए रखने के लिए निजी सम्पत्ति होने के विचार को खतम कर देना चाहिए और सभी उद्योग और अन्य संपत्तियाँ राज्य के पास होनी चाहिए । जबकि यह ख्याल पूंजीवादी के बिलकुल खिलाफ है जो यह मानते हैं कि उद्योगों का संचालन निजी होना चाहिए लाभ पाने के लिए और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए । समाजवादी सोच इसी पूंजीवाद को खतम करने के लिए लाया गया था ।

19 वीं शताब्दी क्रांतिकारी आविष्कारों और नई खोजों का दौर था । बहुत सारे ऐसे नए आविष्कार हुए जिन्होने परिवहन और संचार क्षेत्र में क्रान्ति ला दी जिसने उद्योगों को जन्म दिया । फिर शुरुआत हुई औद्योगिक क्रांति की ।

जैसे-जैसे पश्चिमी देशों में औद्योगीकरण तेजी से बढ़ा, लोगों ने कारखानों में काम करने के लिए शहरों की तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर दिये । कारखानों ने बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया और जो लोग ये कारखाने चलाते थे वे और अमीर होते गए । लेकिन इस से एक दूसरी बड़ी समस्या पैदा हो गई ।

इन उद्योगों के मालिक बढ़ते लाभ के साथ अमीर होते गए और उसका परिणाम इनमें काम करने वाले कर्मियों को भुगतना पड़ा । कारखानों के मालिक होने वाले लाभ से फाइदा उठा रहे थे और वहीं मजदूरों को कम से कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा था । उन्हें खराब परिस्थितियों में भी काम करना पड़ा और कभी कभी बिना ब्रेक लिए लम्बे समय तक काम करना पड़ता था ।

आखिरकार पूंजीवादी शोषण से तंग आकर, यूरोपियन दार्शनिकों ने समाजवाद को शासन के मॉडल के रूप में स्थापित कर दिया जो कि पूंजीवाद को खतम करके और उद्योगों का संचालन राज्यों को देकर लोगों के बीच समानता लाएगा । समाज़वाद को एक पूर्ण आंदोलन बनाने में जर्मन के दो दार्शनिक – कार्ल मार्क्स और फ़्रेडरिक एंजेल्स को श्रेय जाता है ।

मार्क्स और एंजेल्स का मानना था कि पूंजीवाद को खतम करने के लिए श्रमिकों को अधिक शक्ति देनी चाहिए जिन्हे अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए । मार्क्स का दावा था कि समाजवादियों की द्रष्टि काफी काल्पनिक है लेकिन आगे के लिए यही एक मात्र तरीका है जहाँ श्रमिकों को उत्पादन के अधिकार दिये जाएँ । इसी विचार को मार्क्सवाद कहा जाता है जो कम्युनिज़्म का आधार है जो कि एक और तरीके का समाज़वाद ही है ।

जैसा कि हम देख रहे हैं कि इतिहास में समाज़वाद खुद में एक ऐसी विचारधारा बन गई जो बहुत से अलग अलग विचारधारायों पर निर्भर है । हालांकि सभी के पीछे एक ही मकसद था कि समाज के सभी स्तरों के बीच समानता रहे । उस युग में समाज में आने वाले बहुत से बदलाव का कारण समाज़वाद था । दुनिया अराजक शासकों से दुखी हो चुकी थी जिन्होने समाज को लोगों की हैसियत के हिसाब से बाँटा हुआ था । समाज फ्रेंच क्रांति से लेकर दुनिया के सबसे पुराने लोकतन्त्र, अमेरीका की तरफ विकसित हो रहा था, लोग मौजूदा शासकों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे जो सदियों से चले आ रहे थे । युद्ध, क्रांतियाँ और आंदोलन बहुत तेजी से बढ़ने लगे और इन ही क्रांतियों में से समाज़वाद निकाल कर आया ।

अब, यदि समाजवाद इतना अच्छा है, तो आज सभी देश समाजवादी क्यों नहीं हैं ? जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा कि समाजवाद का मतलब अलग निकलने लगा तो समय के साथ समाजवाद को कम्युनिज़्म आंदोलन से जोड़ा जाने लगा जो मार्क्सवाद से विकसित हुआ था ।

20 वीं सदी के आते आते, कम्युनिज़्म समाजवाद के सिद्धांतों से आगे निकाल गया और यूरोप में काफी लोकप्रिय होने लगा । दोनों के बीच बस यही अंतर था कि कम्युनिज़्म सामाजिक व्यस्व्स्था बनाने के लिए धन होना ज़रूरी नहीं समझता ।

कम्युनिज़्म के सिद्धान्त तो अच्छे थे लेकिन असल में इसके परिणाम बहुत ही खराब निकले । जो सिद्धांत जनता के भले के लिए शुरू किए गए थे जिससे उनके बीच में समानता आए, वह एक कठोर आंदोलन में बदल गया और कम्युनिस्ट देशों में जीवन की गुणवत्ता और घट गई । लोगों के बीच से भेद भाव हटाने के चक्कर में, ये लोगों के अधिकार छीन बैठा और बदले में तानाशाहों को जन्म दे दिया, इसलिए आजकल अक्सर कम्युनिज़्म को तानाशाही से जोड़ा जाता है ।  

पिछली सदी में, कम्युनिस्ट/समाजवादी देशों की संख्या तेज़ी से घटी है । ऐसा इसलिए क्योंकि पूरी तरह से सरकार के द्वारा चलाए जाने वाले समाज ने कभी काम नहीं किया है । लगभग सभी मामलों में देखा गया कि सरकार के हाथों में ज़्यादा शक्ति देने से वह तानाशाही में बदल गई, मानव लालच हमेशा एक अच्छा समाज बनाने के बीच आजाता है ।

वैसे तो समाजवाद भी पूरी तरह से अच्छा नहीं है और हम अभी भी इसका एक आदर्श मतलब खोज़ रहे हैं । किताबों में तो बहुत सारे देश समाजवाद होने का दावा करते हैं । उदाहरण के लिए भारत को ही देख लें, हमारे संविधान पर समाजवाद की मोहर लगी हुई है । कुछ ऐसे भी देश हैं जो खुले तौर पर खुद को तानशाही बताते हैं जैसे चीन ।

तो हम वापस वहीं आ जाते हैं जहाँ से हमने शुरू किया था । किस तरह की सरकार की ज़रूरत होगी एक आदर्श समाज बनाने के लिए ? क्या एक आदर्श समाज बनाया जा सकता है ? समाजवाद ही हर रूप में इन सब सवालों का जवाब था जिन्होने सदियों से मानव जाती को परेशान किया हुआ है । आखिर में यही समाजवाद है । यह हमारे सभी विकसित विचारों को दर्शाता है और उठते हुए सवालों का जवाब है । तो फिर क्या समाज़वाद का एक रूप कभी जवाब हो सकता है? यदि नहीं तो सही उत्तर क्या है? मुझे लगता है कि हमे अभी और इंतज़ार करना होगा ।