इरशाद द्वारा लिखित, कक्षा 12 का छात्र

आज के इस युग में किसी भी व्यक्ति के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। आज के इस दौर में दुनिया में कई उदाहरण देखने को मिल रहे हैं, जो अपनी मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल कर सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उम्र के साथ साथ इंसान का शरीर कमजोर हो जाता है, एक बूढ़ा व्यक्ति वे सारे काम नहीं कर सकता जो एक नौजवान युवक कर सकता है। परन्तु आज ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्होंने यह साबित कर दिया है की किसी काम को करने के लिए उम्र बाधा नहीं बन सकती है। मन में लगन होनी चाहिए कार्य को करने के लिए तो सफलता किसी भी उम्र में संभव है।

इसी का सबसे बड़ा उदाहरण है लता भगवान खरे, जिन्होंने अपने साहस और मन के विश्वास से  अपने पति की जान बचाने के लिए 66 वर्ष की आयु में 16 वर्ष की लड़की की तरह मैराथन प्रतियोगिता में भागी और प्रथम स्थान प्राप्त कर विजेता बनी। इस साहस भरी उड़ान से उन्होनें सारे देश में प्रशंसा पाई। साऊथ इन्डस्ट्री के डायरेक्टर ने उनके जीवन पर एक फिल्म बनाने का फैसला लिया।

● लता जी का संघर्ष-

लता भगवान खरे एक 66 वर्षीय महिला है, जो अपने पति भगवान खरे और तीन बेटियों के साथ महाराष्ट्र के बुलठाणा जिले के एक छोटे से गाँव में रहतीं हैं। लता जी और उनके पति ने अपने जीवन की सारी जमा पूँजी अपनी तीनों बेटियों की शादी में खर्च कर दी। वे दोनों दूसरों के खेतों में मजदूरी का काम कर अपना गुजारा कर रहे थे।

एक दिन लता जी के पति की तबियत खेतों में काम करते समय अचानक से खराब हो गई और उन्हें पास ही के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहाँ के डॉक्टरों ने लता जी को सलाह दी की वे अपने पति को बारामती के टर्मिनल अस्पताल में भर्ती कराए और कुछ महत्वपूर्ण टेस्ट करवाए। इस समय लता जी अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी। लता जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे ईलाज के लिए।

फिर उन्होंने अपने पड़ोस, रिश्तेदारों और हर संभव व्यक्ति से सहायता माँगी और थोड़ी धनराशि इक्कठा करके अपने पति को बारामती अस्पताल में लेकर गई।

वहाँ के डॉक्टर ने उन्हें भर्ती किया और कुछ टेस्ट किए,बा हर बैठी लता जी के मन और होठों पर एक ही प्राथना थी कि सब ठीक हो जाए। वे डॉक्टर का बेसब्री से इंतजार कर रही थी, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था डॉक्टर ने उन्हें महंगे टेस्ट और दवाओं का ईलाज बताया। ये सब सुनकर लता जी के हाव भाव ही उड़ गए क्योंकि उनके पास ईलाज के लिए पैसे नहीं थे और वो अपने दुख में रो पड़ी।

●आशा की किरण:-

नम आँखों के साथ लता जी बाहर गई और समोसे वाले से दो समोसे एक अखबार में लिए। उसी समय उनकी नजर अखबार पर लिखी एक मराठी खबर पर पड़ी और वो खुश हो उठी। खबर के शीर्षक मे “बारामती मैराथन” और उसकी विजेता धनराशि के बारे में लिखा था।

अगले ही दिन मैराथन दौड़ थी और उसमें लता जी हिस्सा लेने के लिए वहाँ पहुँची, लेकिन organizer ने उनकी उम्र देखकर उन्हें हिस्सा लेने से मना कर दिया। लेकिन लता जी ने उनसे हाथ जोड़कर विनती की  तो organizer ने उन्हें हिस्सा लेने दिया। मैराथन में भाग लेने के लिए सभी अपने जूते और स्पोर्ट शूस पहन कर तैयार थे पर लता जी अपनी फटी-पुरानी साड़ी में नंगे पाँव अपने आँखो में आँसू लिए खड़ी थी। दोड़ शुरू हुई और लता जी एक 16 वर्षीय किशोरी की तरह दौड़ी। दौड़ते समय लता जी सिर्फ अपने पति के ईलाज के बारे में सोच रही थी जो इस मैराथन की धनराशि से ही संभव था। वे कंकड़ पत्थर की परवाह किए बिना दौड़ रही थी उनके पैरों से खून बह रहा था, पर वे फिर भी दौड़ी जा रही थीं। उनके आत्मविश्वास और जरुरत की वजह से वे  मैराथन जीत गई। उन्हें विजेता धनराशि से सम्मानित किया गया।

लोगों ने उनकी बहुत सराहना की और बारामती की सड़कों पर उनकी जय जयकार हुई। सभी लोग उनके लिए तालियाँ बजा रहे थे। उनहोंने धनराशि को अपने पति के ईलाज में लगाया और उनका सुनिश्चित तौर पर ईलाज करवाया।

लता जी के आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प की वजह से ही वे मैराथन जीत पाई। वे अपने पति से बेहद प्यार करती हैं और उनकी जान बचाने के लिए उन्होंने किसी भी चीज़ की परवाह किए बिना उनके लिए हर संभव प्रयास से धनराशि इक्कठा की। लता जी हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनकी कहानी हमें यह सीख देती है कि उम्र किसी भी काम में बाधा नहीं बन सकती है। अगर हौसले बुलंद हो तो असंभव भी संभव है।

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