अभिषेक झा द्वारा लिखित – 18 साल का छात्र

रतन टाटा भारत के मशहूर उद्योगपति, निवेशक व टाटा संस के रिटायर्ड अध्यक्ष है। उनका जन्म 28 दिसंबर,1937 को  गुजरात के सूरत शहर में हुआ था। उनका पूरा नाम ‘रतन नवल टाटा’ है। उनके पिता ‘नवल टाटा’ व माता ‘सोनू’ थी। जिनका पारिवारिक अनबन के कारण साल 1948 में तलाक हो गया था। जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी दादी ‘नवाजबाई टाटा’ ने किया था।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा की बात करें तो उन्होंने अपनी आठवीं तक की पढ़ाई मुंबई के ‘कैंपियन स्कूल’ में रहकर पूरी की। साथ ही उन्होंने मुंबई के ही ‘कैथ्रेडल व जॉन स्कूल’ से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए USA चले गए जहां उन्होंने साल 1959 में न्यूयॉर्क के इथाका में स्थित ‘कॉर्निल यूनिवर्सिटी’ से स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के साथ ‘वास्तुकला’ में बीएस की डिग्री प्राप्त की और साल 1975 में वह मैनेजमेंट प्रोग्राम्स की पढ़ाई के लिए ‘हार्वर्ड बिजनेस स्कूल’ चले गए।

रतन टाटा का संघर्ष व शुरुआती करियर

साल 1961 में उन्होंने अपने पारिवारिक टाटा ग्रुप के साथ अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने अपने शुरुआती दौड़ में टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया जिसके बाद उन्हें टाटा ग्रुप की कई अन्य कंपनियों के साथ जुड़ने का मौका मिला। साल 1971 में उन्हें राष्ट्रीय रेडियो व इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी (NELCO) में प्रभारी निदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया। बता दें कि उस समय इस कंपनी की आर्थिक हालत बेहद खराब थी, जिसके बाद रतन टाटा ने अपनी काबिलियत के बल पर ना केवल नेल्को कंपनी को नुकसान से उभारा बल्कि 20 फीसदी तक हिस्सेदारी भी बढ़ा ली। परंतु साल 1977 में टाटा को यूनियन की हड़ताल का सामना करना पड़ा जिसके चलते रतन टाटा को नेल्को कंपनी बंद करनी पड़ी। इसके बाद उन्हें एक कपड़ा मिल (Empress Mills) की जिम्मेदारी सौंपी गई। उस समय टाटा ग्रुप की यह कंपनी भी काफी घाटे से गुजर रही थी, जिसके बाद रतन टाटा ने इसे संभालने की काफी कोशिश की और इसके आधुनिकीकरण के लिए निवेश करने का आग्रह किया। परंतु निवेश पूरा नहीं हो सका व मार्केट में सूती व मोटे कपड़े की डिमांड नहीं होने की वजह से इस कंपनी को भी भारी मात्रा में नुकसान पहुंचा और बाद में इसे भी बंद कर दिया गया।

टाटा ग्रुप के इस फैसले से रतन नाखुश थे परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और फिर साल 1981 में ‘जेआरडी टाटा’ ने उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें “टाटा इंडस्ट्रीज” के उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा की। जेआरडी टाटा के इस फैसले पर काफी विरोध हुआ परंतु बाद में हालात सामान्य हो गए। साल 1991 में रतन टाटा को “टाटा इंडस्ट्रीज” के साथ अन्य कंपनियों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसके बाद रतन टाटा ने अपनी काबिलियत और योग्यता के बल पर टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी अध्यक्षता की वजह से टाटा ग्रुप ने कई अहम प्रोजेक्ट स्थापित किए। साथ ही उन्होंने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी टाटा ग्रुप को नई पहचान दिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इतना ही नहीं ‘रतन टाटा’ की कंपनी ‘टाटा मोटर्स’ ने साल 1998 में पहली भारतीय कार ‘टाटा इंडिका’ को बाजार में पेश करके तहलका मचा दिया। इसके बाद ‘टाटा’ ने ‘टेटली’,‘टाटा मोटर्स’ ने ‘जैगुआर लैंड रोवर’ और ‘टाटा स्टील’ ने ‘कोरस ग्रुप’ का सफलतापूर्वक अधिग्रहण किया जिससे टाटा समूह की साख भारतीय उद्योग जगत में बहुत बढ़ी। साल 2008 में ‘रतन टाटा’ ने महज ₹100000 की लागत में दुनिया की सबसे छोटी व सस्ती कार (नैनो) बनाकर उन लोगों के बारे में भी सोचा जिनके लिए कार खरीदना किसी बड़े सपने से कम नहीं था। आज भारत में उनके सबसे प्रसिद्ध उत्पाद ‘टाटा इंडिका’ व ‘नैनो’ के नाम से जाने जाते हैं। 28 दिसंबर, 2012 को 75 साल की उम्र में रतन टाटा, टाटा ग्रुप के सभी कार्यकारी जिम्मेदारी से रिटायर हो गए। उनके रिटायरमेंट के बाद ‘साइरस मिस्त्री’ को टाटा ग्रुप के नए अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। हालांकि वह ‘टाटा ग्रुप’ के सभी कार्यकारी जिम्मेदारी से रिटायर्ड तो हो गए परंतु वह आज भी टाटा ग्रुप के चैरिटेबल संस्थानों के अध्यक्ष के तौर पर कार्यरत हैं। टाटा ग्रुप के वर्तमान अध्यक्ष ‘नटराजन चंद्रशेखरन’ है, जो टाटा ग्रुप का कार्यभार संभाल रहे हैं।

रतन टाटा को उनकी महान उपलब्धियों के लिए अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानो से सम्मानित किया गया

रतन टाटा को साल 2000 में भारत सरकार की तरफ से ‘पदम भूषण’ जैसे उच्च सम्मान से सम्मानित किया गया।

‘रतन टाटा’ को येल की तरफ से नेतृत्व करने वाले सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति का पुरस्कार प्रदान किया गया।

साथ ही उन्हें सिंगापुर की नागरिकता सम्मान के तौर पर प्रदान की गई।

साल 2008 में रतन टाटा को भारत सरकार द्वारा भारत के उच्च नागरिक का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘पद्म विभूषण’ दिया गया।

साल 2010 में रतन टाटा को ‘इंडो इसराय़ली चेंबर ऑफ कॉमर्स’ द्वारा “बिजनेसमैन ऑफ द डिकेड” जैसे अन्य सम्मान से सम्मानित किया गया।

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