ट्रम्प क्यूँ डबल्यूएचओ (WHO) छोड़ना चाहते हैं? और इससे कैसे पूरी दुनिया प्रभावित होगी?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 29 मई को कहा कि WHO ने कोरोना वाइरस को फैलने से रोकने की अच्छी तरह कोशिश नहीं की..
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 29 मई को कहा कि WHO ने कोरोना वाइरस को फैलने से रोकने की अच्छी तरह कोशिश नहीं की..
कक्षा 9 की छात्रा द्वारा लिखित
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 29 मई को कहा कि WHO ने कोरोना वाइरस को फैलने से रोकने की अच्छी तरह कोशिश नहीं की..
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 29 मई को कहा कि WHO ने कोरोना वाइरस को फैलने से रोकने की अच्छी तरह कोशिश नहीं की । उनहोंने कहा कि WHO चीन की बात मानता है इसलिए अमेरिका उसके साथ किसी भी तरह का संबंध नहीं रखेगा । और जो धन कोष WHO के लिए रखा गया था, वो दूसरे स्वास्थ्य संगठनों को चला जाएगा । यह WHO के लिए काफी बड़ा झटका होगा क्यूंकि उनकी कुल धन राशि में से 15% अमेरिका देता है।
WHO, यूनाइटेड नेशन्स (UN) की अजेंसी है जो उसमें आने वाले 150 देशों के स्वास्थ्य का प्रबंध करती है। इसका मुख्यालय जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है । WHO बीमारियों के बारे में जानकारी देता है, महामारी रोकने के लिए अभियान कराता है और टीकों और दवाओं का कैसे उपयोग करना है, यह बताता है । इसने सभी देशों को कोरोना वाइरस के बारे में जानकारी दी, कैसे लॉकडाउन करना है यह बताया और क्वारंटाइन के तरीके भी बताए । WHO ने स्वच्छता बनाए रखने, मास्क के उपयोग, अगर कोरोना हो जाए तो क्या करना चाहिए, और लक्षणों के आधार पर कैसी मदद लेनी चाहिए, ऐसी बहुत सारी जानकारी दी।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने WHO के साथ अमेरिका के रिशतें खतम करने की बात अप्रैल 2020 में शुरू की। उन्होने WHO को 30 दिन का वक़्त दिया अपना जवाब देने के लिए और कहा कि उसके बाद वे अपनी फंडिंग बंद करदेंगे । उन्होने यह सब इसलिए कहा क्योंकि अमेरिका ने WHO को 450 मिलियन डॉलर दिए लेकिन फिर भी WHO ने अमेरिका के नागरिकों की देखभाल नहीं की । उन्होने WHO को ‘चीन की कठपुतली’ कहा क्योंकि WHO ने चीन में यात्रा करने पर रोक नहीं लगाया । विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के फंड न देने से इसका असर सिर्फ महामारी पर ही नहीं बल्कि और बहुत से मुद्दों पर पड़ेगा जैसे कि बहुत सारे देशों को अपना स्वास्थ्य संबंधी कार्य संभालना मुश्किल हो जाएगा । अमेरिका के इस फैसले से महामारी के खिलाफ लड़ाई धीमी हो जाएगी, Covid 19 के खिलाफ टीका बनने का विकास रुक जाएगा । टीबी और पोलियो जैसी बीमारियों के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई पर भी असर होगा । इन बीमारियों को रोक पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा । WHO अमेरिका के कई वैज्ञानिकों का बहुमूल्य योगदान भी खो देगा ।
WHO से निकल जाने का मतलब है कि अमेरिका अपने मतदान के अधिकार भी खो देगा और स्वास्थ्य संबंधी
किसी भी फैसले में आगे से कुछ नहीं बोल सकेगा । कई लोगों ने राष्ट्रपति ट्रम्प के इस कदम को गलत बताया, जिसमें टेनेसी के सीनेटर लामर अलेक्जेंडर और पश्चिम वर्जीनिया के सीनेटर जो मैनचिन शामिल हैं । यूरोपीय संघ के आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और विदेश मंत्री जोसेप बोरेल ने भी ट्रम्प को अपने फैसले पर सोचने के लिए कहा । WHO के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेएसस ने कहा कि वो अभी तक की मदद के लिए अमेरिका का धन्यवाद करते हैं और आशा करते हैं कि आगे भी ऐसी मदद ज़ारी रहेगी । बात यह भी है कि क्या ट्रम्प अकेले ऐसा फैसला ले सकते हैं क्योंकि फंडिंग का फैसला अमेरिकी काँग्रेस लेती है । ऐसे समय में, दुनिया भर के देशों को एक साथ मिलकर महामारी पर काबू पाने के लिए काम करना चाहिए । बहुत से लोगों ने अमेरिका के इस फैसले को गलत बताया क्योंकि अमेरिका में अब भी सबसे ज़्यादा लोग कोरोना वाइरस से पीड़ित हैं और इसके WHO से निकालने में जितना नुकसान WHO को होगा उतना ही अमेरिका को होगा ।