गलवान घाटी में क्या हुआ?
गलवान नदी, चीन के अक्साई चिन क्षेत्र से निकल कर भारत के लद्दाख क्षेत्र को जाती है, इसलिए इस क्षेत्र को गलवान घाटी कहा जाता है..
गलवान नदी, चीन के अक्साई चिन क्षेत्र से निकल कर भारत के लद्दाख क्षेत्र को जाती है, इसलिए इस क्षेत्र को गलवान घाटी कहा जाता है..
कक्षा 11 की छात्रा द्वारा लिखित ।
गलवान नदी, चीन के अक्साई चिन क्षेत्र से निकल कर भारत के लद्दाख क्षेत्र को जाती है, इसलिए इस क्षेत्र को गलवान घाटी कहा जाता है । यह एक विवादित क्षेत्र है जो LAC रेखा के अंदर आता है । LAC एक बहुत बड़ा ज़मीन का खाली टुकड़ा है जो सीमा के पास के भारतीय और चीनी क्षेत्रों के बीच स्थित है । यह LOC जो जम्मू और कश्मीर और POK के बीच स्थित है, उससे अलग है । LOC रेखा बहुत अच्छे से खींची गयी है जो दोनों देशों के नक्शे में शामिल है ।
1993 से, भारत और चीन के बीच सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं । हालांकि, पिछले कुछ हफ्तों में, सीमा के दोनों ओर के सैनिक तैयार दिखे जिससे तनाव पैदा हो गया । और फिर कुछ दिन बाद, चीनी LAC के भारतीय हिस्से में घुस गए । 6 जून को दोनों सेनाओं के कमांडर एक दूसरे से मिले और ये तय किया गया कि दोनों देशों के सैनिकों के बीच एक प्रतिक्रिया शुरू की जाएगी जिसके तहत एक ‘बफर ज़ोन’ बनाया जाएगा जिससे दोनों सैनिकों के बीच लड़ाई न हो और उन्हे निर्देश दिये गए कि वो जिस जगह हैं वहाँ से एक किलोमीटर पीछे हट जायें ।
15 जून को गलवान घाटी में टकराव हुआ जिसमें हमारे 20 बहादुर सैनिक शहीद हुए, यह तब हुआ जब 16 वीं बिहार रेजिमेंट के कमांडर कर्नल संतोष बाबू ने एक चीनी शिविर को हमारे इलाके में देखा। वह शिविर वहाँ नहीं होना चाहिए था इसलिए कर्नल बाबू और उनके साथी उसे वहाँ से हटाने के लिए गए । उन्होने 1996 के समझौते के तहत उस शिविर को हटाने का काम बिना किसी हथियार के किया।
लेकिन चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों से लड़ने के लिए क्रूर तरीके अपनाए जैसे कि नुकीले कीलों से जड़े हुए लोहे की रॉड का इस्तेमाल करना । घाटी के निम्न तापमान और तेज़ बहती गलवान नदी ने स्थिति को और बिगाड़ दिया जिससे लड़ाई और भी कठिन हो गई। हालांकि भारत ने सार्वजनिक रूप से यह बताया कि इस तरफ 20 सैनिक शहीद हुए लेकिन चीन ने ऐसी किसी तरह की सूचना जारी नहीं की । हालांकि, एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन में लगभग 35 लोग मारे गए।
16 जून की मीटिंग के दौरान दोनों सेना के प्रमुख एक समझौते पर पहुंचे । चीनी सैनिकों को अपने सैनिक ले जाने के लिए हेलीकाप्टर से आने की अनुमति दी गई। 20 जून को आगे की कारवाई पर चर्चा करने के लिए पार्टी की बैठक भी हुई ।
45 वर्षों में पहली बार इस तरह का हमला हुआ जिसमें इतने सैनिक शहीद हुए। हालांकि शहीदों का प्रयास व्यर्थ नहीं गया। भारतीय वायुसेना के प्रमुख RKS Bhadauria ने कहा, “हमारे शहीदों द्वारा वीरतापूर्ण कार्यों का प्रदर्शन यह दर्शाता है कि हम हर चुनौतीपूर्ण स्थिति में भी भारत की रक्षा करने से पीछे नहीं हटेंगे”।