अनु द्वारा लिखित, 22 साल की छात्रा

कई देशों में कोरोना वाइरस यानि कोविड-19 महामारी का दूसरा चरण शुरू हो चुका है। सभी बड़ी कंपनियाँ एवं वैज्ञानिक इसी भागादौड़ में हैं कि कोई प्रभावी वैक्सीन बने जिससे यह महामारी रुके। ऐसे में अमेरिकी कंपनी फ़ाइज़र और उसकी सहयोगी जर्मन कंपनी बायोएनटेक द्वारा विकसित फ़ाइज़र वैक्सीन विकसित किया है जो कि हल्के और गंभीर लक्षण वाले मरीजों के इलाज में 95 प्रतिशत तक प्रभावी है।

कंपनी ने अमेरिका और साथ ही यूरोप और ब्रिटेन में भी आवेदन मांगा है टीके के इस्तेमाल के लिए। कंपनियों  ने कहा है कि सुरक्षा एवं अच्छे रिकॉर्ड का अभिप्राय है टीके का आपात इस्तेमाल भी किया जा सकता है। हालांकि टीके का परीक्षण अभी अंतिम चरण में है। हालांकि खुद अमेरिका को भी इस टीके और साथ ही अन्य टीकों के विकसित होने का भी इंतज़ार है ताकि जल्द से जल्द इस महामारी पर काबू पाया जा सके। कंपनी का कहना है कि उसकी कोरोना टीका का अभी तक कोई साइड एफेक्ट देखने को नहीं मिला है।

कंपनी ने अपने टीके के ह्यूमन ट्राइल के नतीजे भी जारी कर दिये हैं पूरी तरह से स्टडी करने के बाद अगर टीके का प्रभाव 90 प्रतिशत से ज़्यादा रहता है तो टीका कोरोना के लिए प्रभावी माना जाएगा। अभी तक यह टीका यूएस फूड ड्रग एड्मिनिसट्रेशन के 50 प्रतिशत तक प्रभावी वाले मानक को पार कर गई है। अमेरिका ने फ़ाइज़र और मॉडर्ना दोनों कंपनियों को 10 करोड़ खुराक के ऑर्डर भी दे दिये हैं। इसी के साथ कंपनी को बाकी यूरोपीय देशों से भी काफी बड़े ऑर्डर मिले हैं। कंपनी सभी ऑर्डर की आपूर्ति कराने के लिए जुट गई है। पर देखना यह है कि कंपनी की फ़ाइज़र वैक्सीन कितने हद तक प्रभावी हो पाती है। अभी तक वैक्सीन के प्रभाव से जुड़ी कोई गंभीर समस्या नहीं देखने को मिली है पर यह वैक्सीन हल्के और गंभीर लक्षणों वाले मरीजों के लिए 95 प्रतिशत तक प्रभावी है। तो क्या यह इस महामारी को काबू कर पाएगी या नहीं, यह तो तभी कहा जा सकता है जब इस वैक्सीन के प्रयोग की इजाज़त मिलेगी। फिलहाल तो कंपनी ने वैक्सीन के इमरजेंसी प्रयोग के लिए इजाज़त मांगी है जिसके लिए कंपनी को यूएस फूड एंड ड्रग एड्मिनिसट्रेशन के कई मानकों को पार करना पड़ेगा। इस वैक्सीन के साथ ही एक आशा की किरण भी दिखती है, इस महामारी को काबू करने के लिए। कंपनी ने अमेरिका के साथ-साथ यूरोप और ब्रिटेन में भी आवेदन दिये हैं वैक्सीन के तत्कालीन उपयोग के लिए। पर कंपनी में वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों में से एक प्रमुख वैज्ञानिक का कहना है कि जितनी बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी से संक्रमित हैं यह वैक्सीन उतनी बढ़ी संख्या में ठीक नहीं कर पाएगी। इसे ठीक करने में बहुत समय लगेगा। वैक्सीन आने के बाद के महीने काफी मुश्किल भरे हो सकते हैं। वैक्सीन आने के बाद यह लोगों में कितनी संख्या में उपलब्ध होगा व इसका क्या मूल्य होगा इसको लेकर कंपनी की तरफ से अभी कोई बात नहीं रखी गई है। ऐसे में यह देखना है कि जो कम विकसित देश हैं और जहाँ संक्रमित की संख्या ज़्यादा है वहाँ इसका क्या असर होता है। क्या कम विकसित लोग इसे आम लोगों तक मुहैया करा पाएंगे या नहीं? फिलहाल तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह वैक्सीन कितने प्रतिशत तक प्रभावी रहती है?

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