अकैडमी अवार्ड्स पर नारीवाद (feminism) और ब्लैक लाइव्स (black lives) मूवमेंट का प्रभाव
19 वीं सदी में जो महिलायों को हर दिन असमानतायों का सामना करना पड़ रहा था उनको चुनौती देने के लिए नारीवादी आंदोलन शुरू हुआ था...
19 वीं सदी में जो महिलायों को हर दिन असमानतायों का सामना करना पड़ रहा था उनको चुनौती देने के लिए नारीवादी आंदोलन शुरू हुआ था...
कक्षा 12 की छात्रा द्वारा लिखित
19 वीं सदी में जो महिलायों को हर दिन असमानतायों का सामना करना पड़ रहा था उनको चुनौती देने के लिए नारीवादी आंदोलन शुरू हुआ था । इस आंदोलन ने महिलायों को पुरुषों के बीच में अपनी जगह बनाने में मदद करी है और इसने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी । हालाँकि आज भी महिलाएँ पितृसत्ता की शिकार हैं, और अलग अलग क्षेत्रों में समान अधिकारों के लिए उन्हे आज भी लड़ना पड़ता है । हम सभी को अकैडमी अवार्ड्स के बारे में पता है (जिन्हे ओसकर्स भी कहते हैं) जो 1929 में शुरू हुए थे । यह रात कला को सराहने, प्रतिष्ठित फिल्मों को अवार्ड देने के लिए और अभिनेताओं, अभिनेत्रियों के शानदार अभिनय को सराहने के लिए आयोजित की जाती है । हालांकि, क्या हम यह देखने से चूक जाते हैं कि बरसों से ज्यादतर नामांकन पुरुषों के रहे हैं ? क्या हम यह देखने से चूक जाते हैं कि कैसे पुरुष मेज़बान इस बात का आसानी से मज़ाक उड़ा देते हैं कि सर्वश्रेष्ठ निर्देशक श्रेणी में महिलायों का एक भी नामांकन नहीं?
थोड़ा समय में पीछे जाते हैं।
पहले ऑस्कर को प्रसारित हुए 90 साल से ज़्यादा हो गए हैं और आज तक सर्वश्रेष्ठ निर्देशक की श्रेणी में सिर्फ 4 महिलाएँ नामांकित हुई हैं । ऑस्कर में 19 से अधिक श्रेणियां हैं, जिनमें से 1,387 पुरस्कार पुरुषों को और 327 महिलाओं को मिले हैं । क्या इसका मतलब यह है कि महिलाओं में प्रतिभा की कमी है ? नहीं । आपने ग्रेटा गर्विग द्वारा निर्देशित फिल्म “लिट्ट्ल वुमेन” के बारे में सुना होगा । यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खूब चली थी और दुनिया भर में इसकी बहुत सराहना हुई थी । छ्ह श्रेणियों में इसका नामांकन हुआ था ।
चौंका देने वाली बात यही है कि फिल्म को इतनी सराहना मिलने के बाद भी इसकी निर्देशक ग्रेट गर्विग का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक श्रेणी में नामांकन नहीं हुआ । इससे पता चलता है कि ऑस्कर आपने लोगों के लिए नामांकन रखने में कितना सेक्सिस्ट है । इसीलिए हमे नारीवाद जैसे आंदोलन की ज़रूरत है बदलाव लाने के लिए । बहुत से लोग ऐसे होंगे जो कहेंगे कि ऐसा नहीं है,तो वो यह सोचें कि पैरासाइट क्यों एक मात्र गैर अंग्रेज़ी फिल्म है जिसे 90 सालों में पहली बार सर्वश्रेष्ठ फिल्म होने के लिए ऑस्कर मिला है ? एक विदेशी फिल्म को ऑस्कर देने में अकैडमी को 90 साल क्यों लग गए ? यह सब पक्षपात और सेक्सिस्ट विचारों की वजह से ही है ।
नारीवाद आंदोलन के अलावा एक और आंदोलन है जो हमे भेदभाव खतम करने में मदद कर रहा है : ब्लैक लाइव्स मैटर मूवमेंट । एक इजरायली-अमेरिकी निर्देशक, लुरी कहते हैं, “सच यह है कि अकैडमी के सदस्यों को वो फिल्में तो पसंद आएंगी जिनमें अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय की वीरता या अश्वेतों का इतिहास दिखाया जाएगा, जैसे ’12 years a slave’ क्योंकि इन में उनकी रूचि है लेकिन वर्तमान में अश्वेतों के खिलाफ हो रहे अन्याय के बारे में उन्हे कोई रूचि नहीं है । ‘Straight Outta Compton’ जैसी फिल्मों को कभी मौका नहीं मिलेगा ।
2016 के ओसकर्स में नामांकित लोगों में ऊपर की चार श्रेणियों में सिर्फ श्वेत अभिनेता और अभिनेत्रियाँ थी, जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर हैशटैग #OscarsSoWhite दोबारा से उठता हुआ देखा गया और हॉलीवुड में विभिन्नता को लेकर चिंता बढ़ी । ऐसे विचारों और अकैडमी पर नसलवादी होने के इल्ज़ाम लगने की वजह से हमें फिल्मों में कुछ बदलाव दिखा जैसे कि नैट पार्कर की “The Birth of a Nation” को काफी खुशभरी प्रतिक्रिया मिली । Birth जैसी फिल्म (जो कि नेट टर्नर की सच्ची कहानी पर आधारित है जिन्होने 1831 में वर्जीनिया में गुलाम विद्रोह का नेतृत्व किया था) ने दर्शक पुरस्कार और अमेरिकी नाटकीय प्रतियोगिता के लिए भव्य जुयरी पुरस्कार जीता । द वीकेंड को अपने ट्रैक “earned it” के लिए संगीत की श्रेणी में नामांकन प्राप्त हुआ और उन्होंने कहा, “मुझे खुशी है कि इस से बातचीत को बढ़ावा मिला है … ऐसा होने की आवश्यकता थी । और अकैडमी भी नए बदलाव करने के प्रयास कर रही है” । हमने जॉर्डन पील जैसे लोगों को देखा है जो कि पहले अफ्रीकी अमेरिकी थे जिन्हे अपनी पहली फिल्म “Get Out” के लिए सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए पुरस्कार मिला । हमने जॉन रिडले को देखा है जो पहले अफ्रीकी अमेरीकन लेखक हैं जिनकी फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला ।
हाँ, अब हम अकैडमी के नामांकन में बदलाव देखते हैं और कैसे इसने पूरे उद्योग के विकास को प्रभावित किया है । इस क्षेत्र में लिंग और रंग मायने नहीं रखने चाहिए जहां प्रतिभा, जुनून और इच्छा सबसे ज़्यादा ज़रूरी है । हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में ऐसे ही अलग अलग रंगों और लिंगों के लोगों को आगे बढ़ते हुए देखते रहें और समाज में कुछ बदलाव देखें ।