प्रियंका द्वारा लिखित, 23 साल की छात्रा

ये कहानी है नीरजा की हमने बहुत सी वीरांगनाओं की कहानी सुनी है, जैसे रानी लक्ष्मीबाई, कल्पना चावला, किरण बेदी । मैं इन्ही महान हस्तियों में एक नाम नीरजा भनोट का जोड़ना चाहती हूँ। 

कौन थी नीरजा ?

नीरजा का जन्म 7 सितम्बर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ। वो एक विमान परिचारिका (एयर होस्टेस) थी। जिसने 22 वर्ष की आयु में दुसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाली । वो ना तो कोई सिपाही थी ओर ना ही कोई समाज सेविका, वो उम्र के उस दौर पे थी जहाँ लड़कियां अपने सपने बुनती हैं ओर उन्हें जीती हैं, उन्हें भविष्य की चिंता नहीं रहती वो आने वाले कल को जीती हैं, फिर ऐसा क्या हुआ की नीरजा को अपनी जान देनी पड़ी?

नीरजा के पिता हरीश भनोट पत्रकार थे । नीरजा अपने पिता और माँ रामा भनोट की लाड़ली थी, उसे घर में सब प्यार से लाडो कह कर बुलाते थे। उसके दो भाई अखिल ओर अनीश भनोट थे। नीरजा की शादी 21 वर्ष की आयु में कर दी गयी । शादी के बाद दहेज़ की मांग ज्यादा होने से वो अपनी पति का घर छोड़ अपने माँ पापा के घर वापस आ गयी। फिर उसने मॉडलिंग की शुरुआत की । मॉडलिंग का शौक उसे पहले से ही था। उसने वीको, बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज डिटर्जेंट और वेपरेक्स जैसे प्रोडक्ट्स के ऐड किए । फिर नीरजा ने पैन ऍम में फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी के लिए आवेदन किया ट्रेनिंग के दौरान नीरजा ने एंटी हाइजैकिंग कोर्स में भी दाखिला लिया । 5 सितम्बर, 1986 को पैन ऍम फ्लाइट 73 जो मुंबई से न्यूयोर्क जा रही थी उसे आतंकवादियों द्वारा हाइजेक कर लिया गया। उस विमान में कुल 361 यात्री ओर 19 क्रू मेंम्बर थे। उस विमान में नीरजा सीनियर फ्लाइट अटेंडेंट थी। जब नीरजा ने ये बात तीनो पायलट को बताई तो वो तीनो पायलट वहां से सुरक्षित निकल गए। नीरजा वहां अकेली उन यात्रिओं के साथ थी। आतंकवादियों ने नीरजा को सभी यात्रियों के पास्टपोर्ट इकट्ठा करने को कहा वो जानना चाहते थे कि उस विमान में कुल कितने अमेरिकी यात्री हैं।  नीरजा ने चालाकी से अमेरिकी यात्रिओं के पास्टपोर्ट छुपा दिए ताकि उनकी जान बच सके। 17 घंटे बाद आतंकवादियों ने एक एक कर यात्रिओं को मरना शुरू कर दिया। 

वो घडी नीरजा के लिए बहुत ही नाजुक और जोखिम भरी थी। उस समय उस साहसी लड़की ने हिमम्त दिखाई और प्लेन का एमर्जेन्सी डोर खोल दिया । उसने खुद को उस एमर्जेन्सी डोर से बाहर नहीं निकाला। कुछ बच्चो को बाहर निकालते वक़्त वह आतंकवादियों से भिड़ गई और उसी में अपनी जान गवां बैठी ।

सम्मान

  • नीरजा ने अपनी जान देकर कई  देशों के नागरिकों की जान बचाई। मरणोपरांत उसने लाखों लोगो की दुआएं प्राप्त की, उसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
  • भारत सरकार द्वारा नीरजा को बहादुरी के सबसे बड़े अवॉर्ड अशोक चक्र से सम्मानित किया गया और 2004 में नीरजा के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया।
  • पाकिस्तान सरकार ने उन्हें तमगा- ए- इंसानियत से नवाजा।
  • अमेरिकी सरकार ने 2005 में जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड से सम्मानित किया।     

यादगार

  • सारी दुनिया नीरजा को “हीरोइन ऑफ हाईजैक” के नाम से जानती है।
  • नीरजा के नाम पर एक संस्था भी है जिसका नाम नीरजा भनोट पैन ऍम न्यास है।
  • उनकी याद के तौर पर मुंबई में एक चौराहे का निर्माण किया गया जिसका उदघाटन अमिताभ बच्चन ने किया है। 

दुनिया कभी उस साहसी लड़की को नहीं भूल पाएगी और ना ही उसके द्वारा किए गए कार्य को, आने वाले दिनों में उसका नाम भी बड़े गर्व के साथ हमारी वीरांगनाओं के साथ लिया जायेगा।

शेरनी सा कलेजा था तेरा, शहीद होकर प्राण दिया

बनी रतन तू इस जहां की

गुजरी नहीं तू

हमेशा दिलो में जिन्दा रहेगा नाम तेरा

शेरनी सा कलेजा था तेरा।।