जम्मू कश्मीर मे 149 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ परंपरा हुई समाप्त
जम्मू कश्मीर की दो राजधानियों जम्मू और श्रीनगर के बीच चलने वाली 149 साल पुरानी दरबारी मूव की परंपरा का अंत हो गया है।
जम्मू कश्मीर की दो राजधानियों जम्मू और श्रीनगर के बीच चलने वाली 149 साल पुरानी दरबारी मूव की परंपरा का अंत हो गया है।
रजनी द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा
जम्मू कश्मीर की दो राजधानियों जम्मू और श्रीनगर के बीच चलने वाली 149 साल पुरानी दरबारी मूव की परंपरा का अंत हो गया है। जम्मू -कश्मीर की सरकार ने 30 तारीख को कर्मचारियों को मिलने वाले आवास आबंटन को भी खारिज़ कर दिया है। इसी के साथ ही अगले तीन हफ्ते के अंदर अफसरों को आवास खाली करने का आदेश भी दे दिया गया है। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 20 जून को बयान देते हुए कहा था कि सरकार के द्वारा ई-ऑफिस का काम पूरा कर लिया गया है, इसके बाद दरबारी मूव की परंपरा को जारी रखने की अब कोई जरुरत नहीं है।
क्या है ‘दरबारी मूव‘ की प्रथा?
हर छह महीने में मौसम बदलने में साथ ही जम्मू -कश्मीर की राजधानी को भी बदल दिया जाता है राजधानी के एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट होने की प्रक्रिया को ही ‘दरबारी मूव’ कहा जाता है। जम्मू कश्मीर की राजधानी छह महीने के लिए श्रीनगर और छह महीने के लिए जम्मू में रहती है।
कब हुई थी ‘दरबारी मूव‘ की शुरुआत?
‘दरबारी मूव’ की शुरुआत 1862 में डोगरा के शासक गुलाब सिंह के द्वारा की गई थी। गुलाब सिंह के समय ही जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बना था और गुलाब सिंह महाराज हरि सिंह जी के पूर्वज थे।
एक बार राजधानी बदलने के लिए खर्च होते थे 110 करोड़ रुपये:
सर्दी के मौसम में श्रीनगर में बहुत ज्यादा ठण्ड पड़ती है। जम्मू में इसी कारण से गरमी थोड़ी ज्यादा होती है। इसी स्थिति को देखते हुए गुलाब सिंह ने ठण्ड के दिनों में जम्मू और गरमी के दिनों में श्रीनगर को राजधानी बनाने की परंपरा शुरू कर दी थी। हर साल राजधानी बदलने की ये प्रक्रिया बहुत ही खर्चीली है। इस परंपरा का पहले भी विरोध होता रहा है। एक बार राजधानी बदलने के लिए करीब 110 करोड़ रुपये खर्च होते थे।
दरबार मूव के समाप्त होने के साथ ही अब हर साल होगी करीब 200 करोड़ रुपये की बचत:
दरबार मूव की परंपरा समाप्त होने के साथ ही अब हर साल देश के राजकोष को करीब 200 करोड़ की बचत होगी। इस ऐतिहासिक निर्णय के साथ ही अब जम्मू और श्रीनगर दोनो ही जगह सरकारी ऑफिस साधारण रूप से काम करेंगे।
जम्मू- कश्मीर के ऐतिहासिक फैसला के साथ ही काफी बदलाव देखने को मिलेंगे। इस फ़ैसले से समय और पैसे दोनों की ही बचत होगी।
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