सोनी द्वारा लिखित, 17 साल की छात्रा
आप लोगों ने कई बार रॉकेट देखा होगा- जैसे पिक्चर में या फोटोस में। चलो आज मैं आपको रॉकेट के बारे में जरूरी बातें बताती हूं।
चंद्रयान क्या है?
चंद्रयान के नाम का अर्थ है – चांद तक ले जाने वाला यान। चंद्रयान एक रॉकेट है जो चांद तक ले जाने में मदद करता है। चंद्रयान को हवा में भेजा जाता है और इसके बाद यह कई हिस्सों में अलग हो जाता है।
चंद्रयान के 3 हिस्से होते हैं जिनमें से दो समान आकार के होते हैं जिन्हें हम स्मॉल बूस्टर कहते हैं। वह दोनों ही अलग हो जाते हैं जिनका काम है चंद्रयान को पृथ्वी की कक्षा से बाहर ले जाना। और दूसरे स्मॉल बूस्टर का काम है कि चंद्रयान को लेकर पृथ्वी का एक चक्कर लगाना, अंतरिक्ष में थोड़ा और आगे ले जाना और आखिरी रॉकेट की मदद से चंद्रयान को चांद पर ले कर जाना। अंतरिक्ष में पहुँच कर चंद्रयान के सोलर पैनल खुल जाते हैं और सूर्य की मदद से और भारत में मौजूद इसरो के गाइड सिस्टम की वजह से चंद्रयान धीरे-धीरे चांद की तरफ बढ़ता है।
चंद्रयान के दो मुख्य हिस्से-
वास्तविकता तो यह है कि चंद्रयान के भीतर 2 हिस्से होते हैं जिन्हें हम ऑर्बिटर और इंपैक्टर कहते हैं। ऑर्बिटर उपग्रह की तरह चंद्रमा की कक्षा में चक्कर काटता है। ऑर्बिटर और इंपैक्टर दोनों साथ जाते हैं लेकिन ऑर्बिटर कक्षा में ही घूमता रह जाता है। इंपैक्टर चंद्रमा की सतह पर पहुंचता है ऑर्बिटर कक्षा के बारे में सारी जानकारी की खोज करता है। इंपैक्टर चंद्रमा की सतह की सारी जानकारी की खोज करता है।
इसके इंपैक्टर को मून इंपैक्टर प्रोब यानी एमआईपी कहते हैं। पिछले चंद्रयान मिशन के समय इंपैक्टर चंद्रमा की सतह से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर ऑर्बिटर से अलग हुआ था और चंद्रमा की सतह पर क्रैश हुआ था।
इंपैक्टर में काफी भिन्न भिन्न प्रकार के यंत्र होते हैं जैसे कि लेजर लाइट से दूरी का पता लगाना, सतह की जमीन में नमी है या नहीं, यहां की सतह उबड़ खाबड़ है, है तो कितनी। इसके अलावा एक ऐसा यंत्र भी होता है जो चंद्रमा पर मिलने वाली चीज़ों के बारे में पता लगाता है कि वे खतरनाक हैं या रेडियो एक्टिव हैं या उनसे विकिरण निकलता है या उनसे रेडिएशंस निकलते हैं। एमआईपी में सबसे कमाल की बात यह है कि मून मैपर अर्थात चंद्रमा पर मिनेरल्स का अध्ययन करने वाला यंत्र। इसी यंत्र ने पता लगाया था कि चंद्रमा पर पानी है।
चंद्रयान- 1
इसरो के माध्यम से चंद्रयान–1 सन 2018 में भेजा गया था। इसरो अपने सारे मिशन सतीश धवन स्पेस सेंटर से ही अंतरिक्ष में लॉन्च करता है। इसरो के पूर्व चेयरमैन ने इसी सेंटर से चंद्रयान-1 को चांद की तरफ भेजा था। 22 अक्टूबर 2008 को भेजे जाने के दौरान 8 नवंबर 2008 को चंद्रयान ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर लिया था।
14 नवंबर को ऑर्बिटर से इंपैक्टर अलग हो गया। 1 साल के दौरान चंद्रयान–1 से हमें पता चला कि चांद पर पानी के कण हैं अर्थात पानी की उपस्थिति है चंद्रमा पर। इस मिशन में 386 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
चंद्रयान-2 का निर्माण
इसरो के चेयरमैन विक्रम साराभाई चंद्रयान-2 के निर्माणकर्ता हैं। बिना किसी अन्य देश की मदद के ही भारत में यह चंद्रयान–2 तैयार किया गया। इस बार कुछ चीजें नई थी। जैसे कि नया लैंडर जिसका नाम रॉबर रखा गया, विक्रम साराभाई के नाम पर।
चंद्रयान-2 को बनने में लगभग 978 करोड़ रुपए खर्च हुए थे और इसका वजन 3850 किलोग्राम था। पिछली बार चंद्रयान–1 में कुल 11 हिस्से थे लेकिन इस बार 14 हिस्से थे।
चंद्रयान-2 को अंतरिक्ष में कैसे ले जाया गया?
अंतरिक्ष तक के जाने की विधि चंद्रयान–1 जैसी ही थी। उसके बाद कुछ बदलाव थे जैसे कि विक्रम लैंडर का एक हिस्सा धीरे-धीरे नीचे उतरेगा। चंद्रयान का रोबर (गाड़ी जो रोबोट की वजह से चलती है) चंद्रमा की सतह पर पानी और नम जमीन की खोज करेगा। रोबर को धरती पर बैठे बैठे चलाया जा रहा था।
विश्व में भारत चौथा ऐसा देश बनने वाला था जो चंद्रमा पर कदम रखता। और पहला ऐसा देश जो दक्षिण ध्रुव के ऊपर उतरने वाला था।
चंद्रमा से थोड़ी ही दूर होने पर टूटा चंद्रयान से कनेक्शन
22 जुलाई को लांच हुए चंद्रयान-2 मिशन ने जोकि 16 मिनट 14 सेकंड में पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कर लिया था। उसने 24 जुलाई को पहली कक्षा पूरी कर ली थी, 26 को दूसरी कक्षा बदल ली थी, 29 जुलाई को तीसरी और 2 अगस्त को चौथी कक्षा पूर्ण कर ली थी। 3 अगस्त को विक्रम लैंडर ने पृथ्वी के ऊपर से फोटो खींचे और उन्हें इसरो ने अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर डाला था।
20 अगस्त को चंद्रयान चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था। तब उसकी चंद्रमा से दूरी 18000 किलोमीटर ही थी। 21 अगस्त को चंद्रयान चंद्रमा से 2650 किलोमीटर की दूरी पर था। उसके बाद चंद्रयान ने एक और फोटो खींची। तब वह चंद्रमा से 201 किलोमीटर दूर था। कुछ 15 मिनट पहले इसकी चाल 3218 किलोमीटर प्रति घंटा थी। उस वक़्त चंद्रमा से लगभग 32 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ रहा था लेंडर। अब लैंडर की चाल 7 किलोमीटर प्रति घंटा करने की कोशिश की गई परंतु लेंडर वैज्ञानिकों के नियंत्रण से बाहर हो गया और इसी कारण कनेक्शन टूट गया और इसरो में सन्नाटा छा गया।
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