राज जैसवाल द्वारा लिखित

किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक भाषा होती है जो उसका गौरव होती है, इसी भाषा को राष्ट्र भाषा के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के स्थायित्व के लिए राष्ट्रभाषा की अनिवार्यता किसी भी शब्द के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है अतः यही भाषा शिक्षा के माध्यम तथा सरकारी काम-काज चलाने के लिए प्रयुक्त की जाती है ।

भारत को विश्वगुरु का गौरव “संस्कृत” भाषा से मिला है और राष्ट्र की आत्मा हिन्दी है, हिन्दी का सम्मान राष्ट्र का गौरव है ।

हिन्दी भारत संस्कृति की आत्मा है

स्वतंत्र भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को ही हिन्दी भाषा को बहरत संघ की राज्यभाषा के रूप में मान्यता दे दी थी। भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसमें सर्वव्यापकता, प्रचुर, साहित्य, रचना, बनावट की द्रष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामर्थ्य आदि गुण होने अनिवार्य होते हैं और ये सभी गुण हमारी हिन्दी भाषा में है। स्वतंत्र भारत ने संविधान में हिन्दी को ही राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार किया गया, हिन्दी विश्व की सबसे अधिक सरल, मधुर एवं वैज्ञानिक भाषा है , अतः जन सामान्य को भी अधिक से अधिक हिन्दी भाषा में सहयोग आवश्यक है ।

हिन्दी भाषा देश के कोने कोने में बोली जाती है, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और देश को राजधानी दिल्ली सहित सम्पूर्ण उत्तर भारत को यह “राजभाषा” है, और अन्य प्रान्तों में यदि कोई भाषा संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग की जा सकती है तो यह हिन्दी ही हो सकती है । इसकी लिपि भी इतनी बोधगम्य है, कि थोड़े अभ्यास से ही समझ में आती है । “देवनागरी लिपि पूर्णत: वैज्ञानिक लिपि है” केंद्र सरकार ने हिन्दी निदेशालय की स्थापना करके “नागरी प्रचारिणी सभा हिन्दी साहित्य सम्मेलन” आदि संस्थानों में भी हिन्दी के विकास तथा प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, राष्ट्रभाषा हिन्दी का भविष्य उज्जवल है अतः हिन्दी भाषा से ही व्यक्तितत्व का समुचित विकास है ।

विद्यालय स्तर पर हर वर्ष 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनय जाता है, अतः नई पीढ़ी को यह संदेश देना चाहती हूँ कि हम अधिक से अधिक हिन्दी भाषा का प्रयोग अकरें, हिन्दी का सम्मान करें व हिन्दी के महत्व को समझें, क्योंकि हिन्दी ही हमारी देश की राष्ट्रभाषा है ।

हिन्दी साहित्य

किसी साहित्य का इतिहास उसके राष्ट्र के इतिहास से अलग नहीं होता, यही इतिहास रश्त्स राष्ट्र के साथ साथ राष्ट्र की संस्कृति और परंपरा का भी दर्शन कराता है । हिन्दी साहित्य का भी अपना एक इतिहास है, हिन्दी साहित्य को किसी सीमा में बांधकर रखना उचित नहीं होगा, यह आरंभ तो हुआ है लेकिन खत्म कभी नहीं होगा, हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास ही नहीं किसी भी भारतीय भाषा और साहित्य का इतिहास अपनी वर्तमान समस्याओं का सामना किए बिना लिखा नहीं गया है ।

हिन्दी साहित्य के बारे में कहा जाए तो इस साहित्य के विरोध में अब तक कोई भी धार्मिक एवं अन्य संप्रदाय नहीं उठे और जो भी उठे वे कब के लुप्त हो चुके, हिन्दी साहित्य को हटाने की चेष्टा करना तो ऐसा है, जैसे किसी शरीर से आत्मा को निकाल देना, हिन्दी साहित्य क्षेत्र ही राष्ट्र की संस्कृति एवं राष्ट्र की आत्मा है। हिन्दी को भी प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल में बांटा गया है । हिन्दी का क्षेत्र बड़ा व्यापक है, हिन्दी के कई रूप हैं ।

हिन्दी विश्व में चौथी व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया भर के लोग हिन्दी गीतों और हिन्दी फिल्मों को प्यार करते हैं जो स्पष्ट रूप से इस भाषा के प्रति स्नेह को परिभाषित करता है ।

हिन्दी को प्राथमिकता न मिलना

दुर्भाग्य से भले ही हिन्दी दुनिया की चौथी व्यापक बोली जाने वाली भाषा है परंतु इसके मूल देश में लोग इसको महत्व नहीं देते हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज, कॉर्पोरेट कार्यालयों तक अंग्रेजी को अधिक प्राथमिकता दी जाती है और हिन्दी अंग्रेजी से पिछड़ जाती है । हिन्दी दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि हिन्दी दिवस ऐसे लोगों को जगाने का प्रयास है और उनमें हिन्दी भाषा के लिए समान स्थापित करने का प्रयास है जो हिन्दी (अपनी मूल/राष्ट्र भाषा) को महत्व नहीं देते हैं)

निष्कर्ष

हिन्दी दिवस को विभिन्न स्थानों पर बहुत उत्साह से मनाया जाता है । हालांकि हमारे देश में बहुत से लोग इस दिन के बारे में अभी अदगत नहीं है और बहुत से लोग इसे महत्वपूर्ण भी नहीं मानते है । यह समय है कि लोगों को इस दिन के महत्व को पहचानना चाहिए क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीय भाषा और हमारी सांस्कृतिक आधार को याद करने का दिन है ।