श्रीलंका संकट
श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो 1948 में आजाद हुआ था। यहां की जनसंख्या 2.2 करोड़ की है। 1972 तक श्रीलंका को सीलोन नाम से जाना जाता था। श्रीलंका की राजधानी जयवर्धनपुरा कोट्टा है।
श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो 1948 में आजाद हुआ था। यहां की जनसंख्या 2.2 करोड़ की है। 1972 तक श्रीलंका को सीलोन नाम से जाना जाता था। श्रीलंका की राजधानी जयवर्धनपुरा कोट्टा है।
गीतांजलि द्वारा लिखित, 19 साल का छात्र
श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो 1948 में आजाद हुआ था। यहां की जनसंख्या 2.2 करोड़ की है। 1972 तक श्रीलंका को सीलोन नाम से जाना जाता था। श्रीलंका की राजधानी जयवर्धनपुरा कोट्टा है। श्रीलंका की मुद्रा श्रीलंकाई रुपया है। श्रीलंका के वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे है तथा उनका पूर्ण परिवार मंत्रिमंडल में शामिल है।
श्रीलंका का संकट
श्रीलंका में कुछ महीनों से आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर अपद्रव्य फैला हुआ है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था अब तक के सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुज़र रही है जिस कारण राजनीतिक और सामाजिक स्थिति भी बहुत खराब होती जा रही है।
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई है। वहां खाद्य पदार्थ, ईंधन और दवाईयों जैसी जरूरी चीजें भी उपलब्ध नहीं है एवं आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार भी समाप्त हो चुका है । वहां फरवरी में विदेशी मुद्रा भंडार केवल 2.2 मिलियन बचा था।
वस्तु की मांग तेजी से बढ़ने और पूर्ति न होने के कारण महंगाई बहुत बढ़ रही है। ईंधन की कमी के कारण बिजली की कटौती बढ़ती जा रही है। लगातार श्रीलंकाई मुद्रा का मूल्यह्रास (मूल्य में कमी) होता जा रहा है।
श्रीलंका में राजनीति अशांति का माहौल है। लोग महंगाई और आर्थिक संकट के कारण सरकार के खिलाफ सड़कों पर विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए प्रदर्शन अब भी जारी है।
आर्थिक और राजनीति संकट का असर समाज पर भी देखने को मिल रहा है। चारों और दंगे फसाद हो रहे हैं कागज़ के अभाव के कारण देश में शिक्षा एवं लेखन क्षेत्र तथा दवाइयों एवं बिजली के अभाव में स्वास्थ्य क्षेत्र ठप पड़ गया है।
श्रीलंकाई संकट के कारण
आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आर्थिक रूप से समर्थ देश श्रीलंका आर्थिक संकट में कैसे फंस गया। ऐसा कुछ महीनों में नहीं हुआ इसके पीछे बहुत से कारण हैं-
द्वीपीय प्रदेश होने के कारण श्रीलंका में पर्यटन बहुत अच्छा था। वहां की जीडीपी का 12 से 15% पर्यटन से ही आता था परंतु 2018-19 में हुए सांप्रदायिक दंगे एवं बम ब्लास्ट के कारण श्रीलंका में पर्यटन कम हो गया और 2020 मे कोरोना के कारण लगभग खत्म हो गया।
कोरोनाकाल में संपूर्ण विश्व के देशों की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो गई थी परंतु श्रीलंका ने इस दौरान चीन से कर्ज भी ले लिया जिस कारण श्रीलंका कर्ज़जाल में फंस गया जिससे आज तक बाहर नहीं निकल पाया है।
कर में कमी: श्रीलंका की सरकार ने कर में कमी कर दी ताकि उपभोग और निवेश बढ़े परंतु न तो उपभोग बढ़ा और न ही निवेश में वृद्धि हुई परंतु करों से आने वाला धन भी रुक गया।
रसायनिक खाद प्रतिबंध: श्रीलंका की सरकार ने रासायनिक खाद पर प्रतिबंध लगा दिया जिससे कृषि उत्पादन एकदम से गिर गया और मूलभूत खाद्य पदार्थ भी दूसरे देशों से आयात करना पड़ा।
चुनाव के दौरान खर्च: चुनाव के दौरान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने बहुत अधिक धन बर्बाद कर दिया।
वर्तमान स्थिति
श्रीलंका में अभी भी बहुत बुरी स्थिति है। प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे समेत अन्य कई मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है और रानिल विक्रमसिंदे श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री बने हैं परंतु राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है और जनता उन्हें पद से हटाने के लिए प्रदर्शन कर रही है।
श्रीलंका आर्थिक संकट से उभरने के लिए विभिन्न देशों से मदद ले रहा है। भारत ने श्रीलंका को 1 बिलियन डॉलर की सहायता दी है तथा भारत, श्रीलंका को अनाज और दवाइयां भी उपलब्ध करवा रहा है।
चीन भी श्रीलंका को 1 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ा देने पर विचार कर रहा है।
श्रीलंका के नेताओं ने आईएमएफ से भी मदद लेने की बात की हैं जिस पर आईएमएफ चर्चा करेगा।
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