गीतांजलि द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

पर्यावरण हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है यह हम सभी जानते हैं परंतु आज के समय में मानवीय क्रियाओं से अनेक ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं जो पर्यावरण, जीव-जंतुओं और स्वयं मानव जाति के लिए खतरा उत्पन्न कर रही हैं। उनमें हरित गृह प्रभाव, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन आदि शामिल हैं। प्रदूषण इनमें से सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि यह पूरे विश्व के विभिन्न शहरों में व्याप्त है। भारत की स्थिति भी वायु गुणवत्ता सूचकांक में बहुत ही खराब होती जा रही है और भारत विश्व के सबसे प्रदूषित देशों की सूची में शामिल होता जा रहा है। आज हम वायु गुणवत्ता सूचकांक के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।

वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) क्या है?

विभिन्न प्रकार के प्रदूषण को मापने के लिए अलग-अलग सूचकांकों और मापदंडों का प्रयोग किया जाता है। वायु गुणवत्ता सूचकांक मुख्यतः वायु प्रदूषण मापने का एक तरीका है जिसके द्वारा एक निश्चित स्थान पर उपलब्ध हवा की गुणवत्ता का पता लगाया जाता है। इसके द्वारा वायु में मौजूद प्रदूषक तत्वों तथा भविष्य में प्रदूषण में होने वाली वृद्धि का भी पता चल जाता है।

भारत में वायु गुणवत्ता सूचकांक कौन जारी करता है?

विभिन्न प्रकार के सूचकांकों और मानकों को जारी करने के लिए देश की संस्थाएँ काम करती हैं। उसी प्रकार से भारत देश में विभिन्न स्थानों की वायु की गुणवत्ता के बारे में मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट फॉरेस्ट और क्लाइमेट चेंज संस्था जानकारी प्रदान करती है और यही संस्था वायु गुणवत्ता सूचकांक जारी भी करती हैं।

कैसे कार्य करता है वायु गुणवत्ता सूचकांक?

वायु गुणवत्ता सूचकांक के द्वारा वायु की गुणवत्ता का पता लगाया जाता है इसके लिए विभिन्न कारकों का प्रयोग किया जाता है और श्रेणियां निर्धारित की जाती हैं।

यह श्रेणियां ज़ीरो से आरंभ होकर पांच सौ तक चलती हैं।

0 से 50 के बीच की वायु गुणवत्ता सूचकांक को अच्छा माना जाता है और ऐसी स्थिति में लोगों के स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता है तथा वायु का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।

दूसरी श्रेणी 51-100 है जिसे संतोषजनक श्रेणी के रूप में जाना जाता है। इस श्रेणी में भी स्थिति ठीक रहती है तथा वायु प्रदूषण एक समस्या नहीं रहता है।

तीसरी स्थिति 101- 200 के बीच है जिसे मध्यम स्थिति माना जाता है इस स्थिति में वायु प्रदूषण का प्रभाव पड़ना आरंभ  हो जाता है।

201-300 के बीच वायु गुणवत्ता सूचकांक को खराब स्थिति माना जाता है। इस स्थिति में वायु प्रदूषण का प्रभाव, वहां रहने वाले लोगों पर बहुत नकारात्मक पड़ता है।

चौथी स्थिति 301-400 के बीच में है। जिसे बेहद खराब स्थिति के रूप में देखा जाता है जब वायु प्रदूषण एक भयावह समस्या के रूप में उत्पन्न होती है और देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर बहुत अधिक प्रभाव छोड़ने लगता है और लोगों को सांस से संबंधित बीमारियां आरंभ हो जाती हैं।

400 से 500 के बीच की स्थिति को सबसे गंभीर श्रेणी में रखा जाता है। इस स्थिति में वायु प्रदूषण अपने चरम पर होता है तथा देश के अधिकतर नागरिक वायु प्रदूषण से सीधे रूप से प्रभावित होते हैं।

वायु गुणवत्ता सूचकांक के निर्धारण के कारक?

भारत में वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारणों से तो आप सभी परिचित होंगे जिसमें पेड़ों की कटाई, प्रदूषकों का निस्तारण, उद्योगों में वृद्धि, गाड़ियों की संख्या में वृद्धि आदि शामिल है। वायु में मौजूद कुछ ऐसे प्रदूषक होते हैं जो वायु की गुणवत्ता को हानि पहुंचाते हैं। इन्हीं के आधार पर वायु गुणवत्ता सूचकांक निर्धारित किया जाता है। इन कारकों में PM10, PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, O3, Pb, NH3 आदि शामिल है। इन्हीं के आधार पर वायु की गुणवत्ता को निर्धारित किया जाता है जिस स्थान पर इन प्रदूषकों की मौजूदगी अधिक होती है वहां की वायु गुणवत्ता खराब होती है और जिस स्थान पर कम होती है वहां पर वायु की स्थिति बेहतर होती है।

वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले अधिकतर गैसों के बारे में आप जानते होंगे परंतु पीएम 2.5 की जानकारी बहुत कम लोगों को होती है। इसका विस्तृत नाम पार्टिकुलर मैटर है। यह बहुत छोटे एरोसोल के कण होते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालते हैं यह विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं।

पीएम 2.5 कई स्रोतों से उत्पन्न होते हैं परंतु इनके सबसे महत्वपूर्ण स्रोत जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न धूलभरी आंधियां, बालू के तूफान और जंगलों की आग है।

भारत में वायु गुणवत्ता

आप कुछ समय से महसूस कर रहे होंगे कि इस वर्ष भारत में वायु गुणवत्ता सूचकांक बहुत खराब हुआ है। भारत के विभिन्न शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। कई स्थानों पर तो यह दीवाली के समय 400 से भी अधिक हो गया था।

दिवाली के बाद से ही भारत में विभिन्न शहरों में एक्यूआई तेजी से बढ़ा है। दिल्ली शहर के अधिकतर स्थान वायु गुणवत्ता की खराब और बहुत खराब स्थिति को दर्शाते हुए प्रतीत होते हैं मुंबई में स्थिति मध्यम है।

भारत में प्रदूषण के लिए कार्य करने वाली संस्थाएं

भारत में प्रदूषण नियंत्रण और वायु गुणवत्ता के लिए मुख्यतः दो संस्थाएं कार्य करती हैं। सीपीसीबी (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) संपूर्ण देश के स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित करने की योजना बनाती हैं।

दूसरी ओर एसपीसीडी (स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) राज्य स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित करती है।

आशा है आपको आज वायु गुणवत्ता सूचकांक के बारे में कुछ नया जानने को मिला होगा और आप अपने आसपास वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास के महत्व को समझ पाए होंगे। हम इसी प्रकार के ज्ञानवर्धक लेखों के साथ फिर मिलेंगे।

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