वंदना द्वारा लिखित, 20 साल की छात्रा

माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊँची चोटी है, यहाँ पर चढ़ाई करने की तमन्ना तो हर किसी को होती है मगर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। मगर यदि यह कारनामा कोई 13 वर्षीय बालिका कर दे तो इसे क्या कहेंगे, यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि पूर्णा मालावत की कहानी है, जिन्होंने ये कारनामा कर दिखाया है। पूर्णा के नाम सबसे कम उम्र में एवेरेस्ट की चढ़ाई करने वाले इंसान के रूप में गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुकी है। बहादुरी की मिसाल पूर्णा भारत के तेलंगाना की निवासी है।

हम सभी जानते है कि माउंट एवरेस्ट विश्व की सबसे ऊँची चोटी है, अनेक पर्वतारोही उस चोटी पर चढ़ चुके हैं। भारत में महिलाओं में बछेन्द्री पाल से लेकर संतोष यादव, प्रेमलता अग्रवाल, अरुणिमा सिंह के बाद मालावत पूर्णा भी उस चोटी पर चढ़ चुकी हैं।

मालावत पूर्णा का परिचय

मालावत पूर्णा का जन्म तेलंगाना के निजामाबाद जिले के पकल गाँव में 10 जून 2000 को हुआ था। इनकी माता का नाम लक्ष्मी है। उनके पिता देवीदास आदिवासी है और साधारण परिवार के किसान हैं। पूर्णा के माता-पिता पढ़े लिखे नहीं है लेकिन वे अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर कुछ बनाना चाहते हैं। इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने अपनी ग़रीबी को भुलाकर अपनी बच्ची मालावत पूर्णा को अपने गाँव के सरकारी स्कूल से पढ़ाई की शुरुआत करने को भेजा।

पूर्णा ने मात्र 13 साल की उम्र में 25 मई 2014 को विश्व की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता प्राप्त की थी, वह माउंट एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने वाली विश्व की सबसे युवा महिला पर्वतारोही है।

उन्होंने स्कूल में पढ़ी गई डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की इस बात को अपने जीवन मे शामिल कर लिया था कि सपने वे नहीं होते जो हम सोकर देखते हैं, सपने वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते। पहाड़ों पर चढ़ने के सपने को उन्होंने वास्तविकता में साकार करके ये साबित कर दिया कि यदि व्यक्ति में हौसला और कामयाबी की लग्न हो तो वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है।

मालावत पूर्णा का सफर

मालावत पूर्णा जिस समाज में रहती है वहां लड़कियों को यह हमेशा महसूस कराया जाता है कि वे लड़कियां है उनके लिए घर से बाहर निकलना भी बहुत मुश्किल होता है लेकिन इन सब बातों से बेपरवाह मालावत पूर्णा बचपन से पढ़ने लिखने में तेज थी और उनके हौसलों को देखकर तो स्कूल के अध्यापक भी दंग रह जाते थे।

एक दिन जब स्कूल निरीक्षण करने आये आईएएस अधिकारी प्रवीण कुमार जब मालावत पूर्णा से मिले तो उसकी बातों और हौसलों को देखकर काफी प्रभावित हुए और फिर यह समय ही मालावत पूर्णा के सफलता की शुरुआत का पहला कदम साबित हुआ। मालावत पूर्णा से प्रभावित होकर प्रवीण कुमार ने मालावत पूर्णा को पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देने को बोला, जिसे सुनकर मालावत पूर्णा के माता पिता को ये बात अच्छी न लगी कि आखिर समाज के लोग क्या कहेंगे की बेटी को घर का कामधाम न सिखाकर पर्वतारोहण सिखा रहें है।

बुलंद हौसलों वाली मालावत पूर्णा अपने माता पिता को समझाते हुए कहती हैं कि हमें तो कुछ ऐसा करना है जिससे दुनिया भी सलाम करे। हम लड़की हैं तो क्या हुआ हम वो कर सकते हैं जिसकी दुनिया कल्पना भी न करती हो और अगर मैं एक बार सफल हो गयी तो हमारे समाज की सोच बदल जाएगी। इन सब बातों को सुनकर मालावत पूर्णा के माता पिता उन्हें पर्वतारोहण सिखने के अनुमति दे देते हैं। फिर प्रवीण कुमार की देखरेख में मालावत पूर्णा नौंवी कक्षा में ही 8 महीने का पर्वतारोहण का कड़ा प्रशिक्षण लेना शुरू करती है। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद मालावत पूर्णा अपने गुरु प्रवीण कुमार के देखरेख में माउंट एवरेस्ट चढ़ाई की शुरुआत करती है और 60 दिनों के दुर्गम सफर के पश्चात मात्र 13 वर्ष की आयु में मालावत पूर्णा ने 25 मई 2014 को दुनिया के सबसे ऊँची चोटी माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने में सफलता प्राप्त की। इस प्रकार मालावत पूर्णा दुनिया की सबसे कम उम्र की माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली लड़की बन गयी जो कि अपने आप मे एक मिसाल है।

मालावत पूर्णा के हौसले तो एवेरेस्ट चढ़ाई के दौरान बुलंद थे लेकिन कई बार चढ़ाई के दौरान ऐसे भी पल आए, जो बहुत मुश्किल थे परंतु मालावत पूर्णा अपने लक्ष्य से डिगी नहीं। एवेरेस्ट चढ़ाई के दौरान बीच रास्तों में मिलने वाले मानव के मृत शरीर उन्हें डरा जरूर देते थे लेकिन मालावत पूर्णा खुद में इतना हौसलों से बुलंद थी कि इन सब बातों की परवाह किये बिना आगे बढ़ती चली गयीं और फिर एक ऐसा समय भी आया जब मालावत पूर्णा जो हासिल करना चाहती थी उन्हें मिल गया।

उन्होंने अपने आख़िरी क़दम के एवेरेस्ट के शिखर को चूमते ही तिरंगा फहराकर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कराया और इस समाज मे लोगों के लिए एक मिसाल बन गयी। उन्होंने ये भी सच कर दिखलाया कि अगर हौसलों में जान हो तो लड़कियां भी आज के ज़माने मे बहुत कुछ हासिल करके दिखा सकती हैं और इस तरह मालावत पूर्णा भी अपने गुरु प्रवीण कुमार की तरह आईएएस बनकर देश की सेवा करने की इच्छा रखती है।

एवेरेस्ट फतेह के बाद मालावत पूर्णा को भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा कई इनामों से पुरस्कृत किया गया उनके जीवन पर आधारित फ़िल्म पूर्णा का निर्माण राहुल बोस के निर्देशन में हुआ। यहाँ तक कि राहुल बोस मालावत पूर्णा के हिम्मत के हौसलों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खुद कहा कि पूर्णा के बिना बॉलीवुड भी अपूर्ण है इसीलिए पूर्णा के जीवन के बारे में सबको जानना चाहिए जो आज के ज़माने में लड़कियों के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

इस प्रकार जब पूर्णा इतनी मुश्किलों के बावजूद माउंट एवरेस्ट पर फतेह हासिल कर सकती है तो हम भी कर सकते हैं। पूर्णा हम सभी के लिए एक मिसाल है हम सभी को उनके जीवन से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए।

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छवि स्रोत: thehindu.com