मनीषा द्वारा लिखित, कक्षा 9 की छात्रा

हमारी पृथ्वी में अनेकों ऐसी चीज़े होती हैं जिन पर विश्वास तभी किया जा सकता है जब हम उन्हें अपनी आँखों से देख लें। चलिये आज पृथ्वी में होने वाली एक ऐसी ही अद्भुत चीज़ के बारे में जानते हैं। वो चीज़ है “ध्रुवीय ज्योति”। जी हाँ सही सुना आपने “ध्रुवीय ज्योति”। इसे कई नामों से जाना जाता है जो कि प्रकृति की देन या इसकी वजह से होती है। यह हमारी पृथ्वी के गोलार्ध के दक्षिणी और उत्तरी भागों में पाया जाता है। उत्तरी भाग में इन्हें “सुमेरू ज्योति” कहा जाता है। वहीं दक्षिणी भागों में बनने वाली ज्योति को कुमेरु ज्योति कहा जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि प्रकृति में इतनी अद्भुत चीज़ें कैसे होती हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि यह उनके पूर्वजों की आत्माएँ हैं पर विज्ञान में इसका कुछ अलग ही मतलब होता है।

ध्रुवीय ज्योति कब और कैसे बनती है?

पृथ्वी के केंद्र में पिघला हुआ लोहा होता है और ग्रेविटी के कारण यह अंदर ही घूमता रहता है। इसी कारण एक बहुत बड़ा चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) बन जाता है। यह पृथ्वी के कोर से शुरू होता है और इसके आसपास के स्पेस में फैल जाता है। यह सूर्य से चार्ज लेकर आने वाले कणों को वायुमंडल मे प्रवेश नहीं करने देता। लेकिन यह चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के ध्रुवों पर कमज़ोर पड़ जाता है। सूर्य से निकलने वाली कुछ छोटे-छोटे कण पृथ्वी के कमजोर चुंबकीय क्षेत्र वाले भागों यानि उत्तरी ध्रव और दक्षिणी ध्रव में प्रवेश करते हैं। उसके बाद यह कण हमारी पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों से टकराते हैं तब “ध्रुवीय ज्योति” का निर्माण होता है। तब हमे रंग बिरंगी लाइट दिखाई देती है। इन लाइट का रंग इस बात पर निर्भर करता है कि सुर्य से आ रहे कण किस जगह पर वायुमंडलीय गैसों से टकराते हैं।

ये लाइट हमेशा रात के समय दिखाई देती हैं। इसलिये सभी को लगता हैं कि ये सिर्फ रात में ही बनती हैं। लेकिन ऐसा नहीं हैं, दिन में भी ये लाइट बनती हैं। दिन में सूर्य के अत्यधिक प्रकाश के कारण दिखाई नहीं देती। यह लाइटें ज़्यादा तर अगस्त के अंतिम में से अप्रैल और सितंबर से मार्च में दिखाई देते हैं। ज़्यादातर यह रोशनी यूकौन, अर्जेंटीना, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड में दिखाई देती हैं। इस अद्भुत नज़ारे को अपनी आँखों में कैद करने के लिए लोग दुनिया भर से आते हैं।

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