गीतांजलि द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा

आपने यह तो सुना ही होगा कि आज का यह आधुनिक विकास हमे विनाश की तरफ लेकर जा रहा है। यह कथन दर्शाता है कि आज मनुष्य और विज्ञान दोनों ही विकास करने में इतने अंधे हो गए हैं कि इस विकास के लिए प्रकृति को कुर्बान कर रहे हैं। उन्हें एहसास ही नहीं है कि मानवीय क्रियाकलापों और विकास के लिए बनाई गई अंधाधुन नीतियों ने  प्रकृति में बहुत से परिवर्तन उत्पन्न कर दिए हैं जो मनुष्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकते हैं। आज धरती हमें बार-बार विनाश के संकेत दिए जा रही है ऐसा ही एक संकेत इस वर्ष के शुरुआत में जोशीमठ ने दिया। जोशीमठ की ज़मीन लगातार तेज़ी से घसने लगी है जिसने वहां पर मानव जीवन को हिला कर रख दिया है। आज हम जोशीमठ में हुए घटना के बारे में पूर्ण जानकारी हासिल करेंगे।

जोशीमठ

सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि जोशीमठ की स्थिति कैसी है। जोशीमठ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित एक शहर है। यह क्षेत्र 26000 मीटर ऊंचाई पर है यहां की अनुमानित जनसंख्या की बात करें तो वह लगभग 25000 है और हज़ार से भी अधिक आवास स्थल है।

जोशीमठ का महत्व

जोशीमठ भारत के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसका एक विशेष धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सैन्य महत्व है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पर भारत का प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ स्थित है। यहीं पर भारत के प्रसिद्ध धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और उस ज्ञान के बलबूते पर उन्होंने भारत के चार मठों बद्रीनाथ, द्वारिका, पुरी तथा रामेश्वरम की स्थापना की।

जोशीमठ को ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है।

यहां पर बहुत से धार्मिक स्थल हैं जो इस स्थान पर धार्मिक महत्व को और अधिक बढ़ा देते हैं जिनमें नरसिंह मंदिर सबसे प्रसिद्ध है जहां वर्ष भर लोग आते जाते रहते हैं।

अगर आर्थिक दृष्टि से देखें तो यह स्थान आस पास में कई पर्यटन स्थलों से घिरा हुआ है जिस वजह से यहां पर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती हैं और भारत सरकार को राजस्व प्राप्त होता है। यहां पर प्रमुख पर्यटन स्थलों में बद्रीनाथ मंदिर, औली एवं नीति घाटी शामिल है।

सैन्य दृष्टि से भी यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय सीमावर्ती क्षेत्रों के पास स्थित है इसीलिए यहां पर भारत का सबसे बड़ा सैन्य कंटैन्मेंट है।

जोशीमठ में धसाव

पिछले कुछ 1 महीने से जोशीमठ लगातार ज़मीन में धसने लगा है जिस कारण निवासियों के मकानों और सड़कों पर बड़ी-बड़ी दरारें उभरते हुए दिखाई दे रही हैं। यह स्थान धरती में डूबने की स्थिति में आ चुका है।

जोशीमठ के धसाव के कारण

अगर हम इस घटना के कारण के बारे में जानें तो जोशीमठ के भौगोलिक स्थिति के बारे में जानना होगा। जोशीमठ की भूमि बहुत स्थायी और स्थिर नहीं हैं, यह कुछ पहाड़ों के टुकड़ों और मलबे के ढेर पर निर्मित हुआ है इसीलिए अधिक नवनिर्माण तथा आधुनिक तकनीकों के उपयोग से बने भवनों का बोझ के कारण भूघसाव देखने को मिल रहा है।

जोशीमठ में भू धसाव के जिम्मेदार

जोशीमठ में भू धसाव के लिए बहुत सी चीजों को जिम्मेदार बताया जा रहे हैं जिनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं:-

सरकार का कहना है कि जोशीमठ में होने वाले भू धसाव का कारण वहां के लोगों द्वारा अवैध तथा बिना योजना के किए जाने वाले निर्माण कार्य हैं।

जबकि विभिन्न पर्यावरणविद् ने बताया है कि जोशीमठ में होने वाली घसाव का कारण सरकार द्वारा बड़े बड़े निर्माण कार्य और परियोजनाएँ हैं जिनमें अत्याधुनिक मशीनों का उपयोग किया गया है इसमें बाईपास निर्माण तथा तपोवन विष्णु गाड़ पर टनल बनाने के लिए लाई गई परियोजनाएं शामिल हैं।

निर्माण कार्यों के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों का प्रयोग किया गया और ब्लास्ट इंडोर तकनीकों का उपयोग हुआ है जिससे जोशीमठ की भूमि में दरारे उत्पन्न हो गई है और जलस्तर भी समाप्त हो गया है।

इसके साथ साथ 2020 में यहां चार धाम राजमार्ग परियोजनाएं भी लाई गई हैं।

क्या पहले दी गई थी चेतावनी?

यह पहली बार नहीं है जब जोशीमठ में ऐसी घटना देखने को मिली है। पहले भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिली जिसमें एक दो घरों में दरारें दिखी परंतु इस बार स्थिति बहुत गंभीर है। जोशीमठ में पहले कुछ स्थानों पर  दरारे पाईं गई थीं जिसके बाद सन 1976 में इस जांच के लिए एमसी मिश्रा समिति बनाई गई। उन्होंने बताया कि जोशीमठ का निचला हिस्सा बहुत मजबूत नहीं है इसलिए उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए परंतु इस समिति की रिपोर्टों पर ध्यान नहीं दिया गया।

चारधाम राजमार्ग निर्माण परियोजना पर भी बहुत से अवरोध लगाए गए थे क्योंकि भूवैज्ञानिकों ने इसे सहमति नहीं दी थी परंतु बाद में इस योजना को सहमति प्रदान कर दी गई।

जोशीमठ की वर्तमान स्थिति

जोशीमठ के धसाव से  25000 से भी ज्यादा लोगों की जान पर खतरा है वहां के लोगों को अपने घर छोड़ने पड़ रहे हैं। सरकार ने लोगों को मुआवजा उपलब्ध करवाया है परंतु वह उनकी नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।

जोशीमठ जैसे ही मलबे के ढेर तथा पहाड़ पर कई अन्य क्षेत्र विकसित हुए है। अगर स्थिति को काबू में नहीं किया गया तो उन क्षेत्रों में भी जोशीमठ जैसी घटना देखने को मिल सकती है। हमें सततपोषणीय विकास को अपनाना होगा और इसी के द्वारा हम पर्यावरण को संरक्षित कर सकते हैं जिसके लिए हमें आज से ही कदम उठाना होगा।

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