अभिषेक झा द्वारा लिखित, कक्षा 12 का छात्र

डॉली दुनिया की पहली स्तनपायी क्लोन भेड़ थी। वह अन्य भेड़ों से बिल्कुल अलग थी, क्योंकि उसका जन्म किसी ‘मादा भेड़’ (Female Sheep) से नहीं हुआ था। बल्कि उसे क्लोन किया गया था। डॉली भेड़ के बारे में और जानने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि क्लोनिंग किसे कहते हैं और कैसे की जाती है? आप में से ज्यादा लोगों को क्लोनिंग के बारे में पता ही होगा, अगर नहीं तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है।

तो आइए, जानते हैं क्लोनिंग के बारे में

क्लोनिंग का मतलब होता है, अलैंगिक विधि द्वारा एक जीव से दूसरा जीव तैयार करना। इस विधि से उत्पादित ‘क्लोन’ हुबहू अपने जनक से शारीरिक और अनुवांशिक रूप में एक जैसे होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाना अर्थात कार्बन कॉपी को तैयार करना ही क्लोनिंग कहलाता है।’क्लोनिंग’ कई प्रकार के होती है:

  1. जीन क्लोनिंग या आणविक क्लोनिंग (Gene Cloning or molecular cloning)
  2. रिप्रोडक्टिव क्लोनिंग (Reproductive Cloning)
  3. चिकित्सीय क्लोनिंग (Therapeutic Cloning)
  4. स्तंभ कोशिका (Stem Cell)

क्लोनिंग के लाभ

  • क्लोनिंग की सहायता से असाध्य व आनुवांशिक बीमारियों को सफलतापूर्वक दूर किया जा सकता है।
  • साथ ही इसकी सहायता से लीवर, किडनी जैसे अन्य अंगों का निर्माण कर अंगों का प्रत्यारोपण (Organ’s Transplantation) किया जा सकता है।
  • कैंसर के इलाज में भी क्लोनिंग काफी हद तक कारगर साबित हो सकता है।
  • इस तकनीक की मदद से प्लास्टिक सर्जरी भी की जा सकती है।
  • इसके अलावा क्लोनिंग का उपयोग विशेष प्रकार की वनस्पतियों व जीवों के क्लोन बनाने में भी किया जा सकता है, जिससे आवश्यक औषधियों का निर्माण और जैव-विविधता का संरक्षण आसानी से हो सकेगा।

क्लोनिंग के नुकसान

  • क्लोनिंग का अत्यधिक उपयोग करने से मानव की जनसंख्या में विविधता नहीं रह पाएगी।
  • साथ ही क्लोनिंग की वजह से व्यक्ति की पहचान करने में भी कठिनाई हो सकती है।

चलिए अब जानते हैं डॉली भेड़ के बारे में कि आखिर उसे कैसे तैयार किया गया था|

डॉली को क्लोन की मदद से बनाया गया था। उसे बना पाना कोई मामूली बात नहीं थी। काफी मेहनत मशक्कत करने के बाद डॉली को बनाया गया था। डॉली को बनाने में ‘न्यूक्लियर ट्रांसफर तकनीक की सहायता ली गई थी। जिसमें 2 भेड़ों के सेल (Cell) लिए गए थे। इस प्रोसेस में पहले ‘फिन डोर्सेट भेड़’ के सेल से ‘न्यूक्लियस’ को निकाल कर स्कॉटिश काली भेड़ के अंडाणु सेल (Egg Cell) में डाला गया। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि किसी भी सेल को एनर्जी न्यूक्लियस से मिलती है। बिना न्यूक्लियस के सेल बिल्कुल बेकार होता है। इस प्रोसेस में न्यूक्लियस की अत्यधिक आवश्यकता थी, इसलिए ऐसा किया गया था। फिर उस नए सेल को स्कॉटिश काली भेड़ के गर्भाशय में रखा गया, जिससे वह मेमने के बच्चे को पोषक तत्व व जन्म दे सकें। यह मेमने का बच्चा और कोई नहीं डॉली थी। जिसे बनाने में साइंटिस्टों को काफी मेहनत मशक्कत करनी पड़ी। बता दें कि साइंटिस्टों ने लगभग 200 से भी अधिक बार भेड़ों पर एक्सपेरिमेंट किए परंतु उन्हें हर बार नाकामयाबी ही हासिल हुई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और हर बार कोशिश करते रहे। उनकी कोशिशों की वजह से ही 5 जुलाई, 1996 को डॉली सफलतापूर्वक पैदा हुई। डॉली को बनाने का सारा श्रेय रोजलीन इंस्टिट्यूट के साइंटिस्ट केथ कैंपबेल’ और इआन विलमट को जाता है। डॉली का जन्म काली मुंह वाली स्कॉटिश भेड़ से हुआ था, परंतु उसका रंग रूप बिल्कुल उसकी मां (फिन डोर्सेट भेड़) के जैसा सफेद था क्योंकि उसे बनाने में ‘फिन डोर्सेट भेड़’ के न्यूक्लियस का प्रयोग किया गया था, इसलिए उसका रंग रूप बिल्कुल अपनी मां ‘फिन डोर्सेट’ के जैसा था।

आप में से ज्यादातर लोग ‘फिन डोर्सेट भेड़’ के बारे में जानते ही होंगे कि उसका जीवनकाल लगभग 11 से 12 साल तक का होता है, लेकिन डॉली का जीवनकाल दूसरे भेड़ों की तुलना में काफी छोटा रहा। हालांकि उसने अपने जीवनकाल में लगभग 6 मेमने के बच्चे को जन्म दिया। परंतु साल 2001 के बाद से डॉली लगातार बीमार रहने लगी। मात्र 4 साल की उम्र में उसे अर्थराइटिस की बीमारी यानी जोड़ों की बीमारी हो गई, जिसके बाद से वह लंगड़ा के चलने लगी और जल्द ही वह अन्य बीमारियों के चपेट में भी आ गई। जिसके कारण डॉली ने 14 फरवरी,2003 को मात्र केवल 6.5 साल की उम्र में अपना दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बाद पता चला कि उसे लंग कैंसर था, जिसके कारण उसकी मृत्यु हुई। यह बीमारी अक्सर भेड़ों को होती रहती है इसलिए ऐसी भेड़ों की खासतौर पर देखभाल करनी पड़ती है। साथ ही उन्हें खुले वातावरण में भी रखा जाता है, परंतु डॉली के साथ ऐसा कुछ नहीं था। उसके ऊपर रिसर्च किया जा रहा था, जिस वजह से उसे चार दीवारी के भीतर ही रखा गया। जीवन के अंतिम पलों में भी वह रोजलीन इंस्टिट्यूट में ही रही। परंतु मृत्यु के बाद उसकी बॉडी को स्कॉटलैंड के नेशनल म्यूजियम को डोनेट कर दिया गया और आज भी डॉली उसी म्यूजियम में मौजूद है।

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