कैसा अजीब दौर चल गया, किसी के सपने तो किसी के अपने ले गया। तन्हाई का दौर है, अपनों से ही दूर है, अब करें भी क्या बीमारी ने लूटा भरपूर है। उस कोयल की मधुर आवाज़ थम गई, वो अपनी साँसें खोने से सहम गई। मृत्यु का दौर, सांसों की लंबी डोर है, थम गई ज़िंदगी, डोर कटने का भी तो दौर है। ज़िंदगी में दूरियाँ, फ़ासले बढ़ गए, देखो अब हम मृत्यु के पथ पर ठहर गए। बंद हैं घर के दरवाज़े, इस सन्नाटे में कहाँ से आयें आवाज़ें। बीमारी की छाई हुई कहर है, ज़िंदगी और मौत के बीच कोरोना की आई लहर है।
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