मलखंब खेल से जुड़े कुछ तथ्य
खेल हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि खेलों के माध्यम से हम अपने आपको शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार से स्वस्थ रखते हैं।
खेल हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि खेलों के माध्यम से हम अपने आपको शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार से स्वस्थ रखते हैं।
गीतांजलि द्वारा लिखित, 19 साल की छात्रा
खेल हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि खेलों के माध्यम से हम अपने आपको शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार से स्वस्थ रखते हैं। एक समय था जब कहा जाता था खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब। परंतु आज के समय में खेलों के माध्यम से भी सफलता प्राप्त की जा सकती है और आज इस समय में खेल क्रिकेट फुटबॉल और हॉकी तक ही सीमित नहीं है। आज खेलों में बहुत अधिक विभिन्नता और विविधता देखने को मिल रही है। आज बहुत से खेल ऐसे हैं जिनके बारे में शायद ही सभी को पता हो। आज हम ऐसे ही एक खेल मलखंब के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
मलखंब क्या है?
मलखंब भारत के राज्यों में खेले जाने वाले पुराने और पारंपरिक खेलों में से एक है। इस खेल में सीधा खम्भा या रस्सी लगी होती है। इस खंभे को मलखंब कहते हैं। खिलाड़ी इसके ऊपर खड़े होकर तरह-तरह की कुश्ती करतब और अन्य प्रकार की मुद्राएं दिखाते हैं।
मलखंब का शाब्दिक अर्थ
आपको मलखंब शब्द बहुत ही अलग और अजीब लग रहा होगा परंतु इसका शाब्दिक अर्थ भी है। मलखंब दो शब्दों से मिलकर बना है मल और खंब। मल अर्थात बलवान /योद्धा तथा खंब मतलब खंभा। इन दोनों का संयुक्त अर्थ खंभे पर कुश्ती की मुद्राएं दिखाना है।
मलखंब का इतिहास
अगर हम मलखंब के इतिहास की बात करें तो यह खेल बहुत अधिक वर्ष पुराना है अर्थात हम इसे भारत के प्राचीन खेलों में से एक मान सकते हैं। इसके बारे में हमारे प्राचीन ग्रंथों रामायण, महाभारत आदि में भी वर्णन मिल जाता है परंतु बीच की कुछ शताब्दियों में मलखंब का प्रभाव कम हो गया।
17 वीं शताब्दी में मलखंब खेल फिर से प्रभाव में आने लगा उस समय के राजाओं ने अपने सैनिकों को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए मलखंब सीखाना आरंभ कर दिया था क्योंकि इस खेल को खेलने से शरीर मजबूत तथा स्वस्थ बनता है। यहां तक यह भी माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई, तात्या तोपे और नाना साहेब आदि ने भी मलखंब का प्रयास किया है।
सबसे पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महाराष्ट्र के दस योद्धाओं ने बर्लिन में मलखंब का प्रदर्शन किया जिसके बाद से संपूर्ण विश्व का ध्यान इस खेल की तरह आकर्षित हो पाया।
1958 में भारत की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय जिम्नास्टिक चैंपियनशिप हुआ, जिसमें मलखंब खेल प्रतियोगिता का भी आयोजन हुआ। इसके परिणाम स्वरूप मलखंब खेल के बढ़ते महत्व को देखते हुए 1981 में मलखंब फेडरेशन ऑफ इंडिया बनाया गया।
मलखंब के नियम
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर खेल को खेलने के कुछ ना कुछ नियम होते हैं वैसे ही मलखंब के कुछ आधारभूत नियम हैं।
मलखंब खेल को बाकि जिम्नास्टिक खेलों के नियमों के आधार पर ही खेला जाता है।
खिलाड़ियों को सीधे खंबे के ऊपर विभिन्न प्रकार की मुद्राएं और करतब दिखाना होता है और निर्णायक उनके कौशल के आधार पर उन्हें अंक देते हैं।
खिलाड़ियों के कौशल को उनके विभिन्न प्रकार के करतब, बैलेंस करने की क्षमता, कूदने और खंभे पर घूमने की क्षमता आदि के आधार पर मापा जाता है।
मलखंब के प्रकार
मलखंब के बहुत से प्रकार हैं क्योंकि अलग-अलग स्थान पर इसे खेलने के तरीके में कुछ ना कुछ भिन्नता है परंतु तीन प्रकारों को अपनाया गया है। इन तीनों में भिन्नता खंभे एवं रस्सी में भिन्नता के आधार पर की जाती है।
पोल मलखंब सबसे प्रसिद्ध है जो बहुत पुराने समय से चला आ रहा है इसमें एक मोटा खंबा जमीन में गड़ा होता है जो नीचे मोटा तथा ऊपर जाकर पतला हो जाता है। इसमें खिलाड़ी इस खंबे के सहारे करतब दिखाते हैं।
हैंगिंग मलखंब जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है इसमें पोल जमीन में नहीं ऊपर से रस्सी से बांधकर लटकाया गया होता है जिसे पकड़कर खिलाड़ी करतब दिखाते हैं।
रोप मलखंब जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, रोप अर्थात रस्सी के सहारे खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी रस्सी को पकड़कर करतब दिखाते हैं।
मलखंब और मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश राज्य में मलखंब बहुत महत्वपूर्ण खेलों में से एक है। वहां पर सबसे अधिक संख्या में इस खेल को खेला जाता है यहां तक वहां का राजकीय खेल भी मलखंब है।
मध्यप्रदेश में मलखंब के महत्व और लाभों को ध्यान में रखते हुए 10 अप्रैल 2013 को मलखंब को राजकीय खेल घोषित किया गया। तबसे हर वर्ष मध्यप्रदेश में 10 अप्रैल को मलखंब दिवस मनाया जाने लगा।
आशा है आपको यह लेख जो मलखंब से संबंधित था, ज्ञानवर्धक लगा होगा। हम इसी प्रकार के विभिन्न ज्ञानवर्धक लेखों के साथ मिलते रहेंगे।
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शीर्षक छवि स्रोत: wikimedia