1. परम तत्व का प्रतीक (ब्रह्म):
    शून्य को उस अवस्था का प्रतीक माना जाता है जहाँ कुछ भी नहीं है, लेकिन हर चीज़ की संभावना मौजूद है। यह “ब्रह्म” की तरह है — निराकार, अनंत, अपरिमित और सर्वव्यापक।
  2. निर्गुण स्थिति:
    शून्य वह अवस्था है जहाँ कोई गुण, रूप या भेद नहीं होता। यह निर्गुण, निराकार और निर्विकल्प अवस्था को दर्शाता है, जो योग और ध्यान में अंतिम लक्ष्य मानी जाती है।
  3. माया और ब्रह्म के बीच अंतर:
    संसार (माया) परिवर्तनशील है, लेकिन शून्य (ब्रह्म) अपरिवर्तनशील है। इसलिए शून्य को सत्य और शाश्वत का प्रतीक भी माना जाता है।
  4. सृष्टि की उत्पत्ति:
    हिंदू मान्यता के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति “शून्य” से हुई — यानी “असत” से “सत” का प्रकट होना।
    ऋग्वेद में भी कहा गया है:
    “नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं”
    अर्थात: उस समय न सत था, न असत, केवल एक अद्वितीय तत्त्व था।
  5. गणितीय योगदान:
    हिंदू गणितज्ञ आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने शून्य को एक संख्यात्मक मूल्य के रूप में परिभाषित किया। यह खोज भारत की सबसे महान देन मानी जाती है, जिसने विज्ञान और गणित की दिशा ही बदल दी।

तो, शून्य हिंदू मिथक और दर्शन में केवल “कुछ नहीं” नहीं है, बल्कि यह सब कुछ की संभावना, आध्यात्मिक मुक्ति, और सृष्टि की जड़ का प्रतीक है।